SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ m . - तिविहार में पानी का ग्रहण दिन मे ही किया जा सकता है । (क) अभिग्रह-प्रत्याख्यान - उपवास आदि तप करने के बाद या विना उपवास के अपने मन में पहले निश्चयं. कर लेना कि अमुक प्रकार का सयोग मिलने पर या, अमुक वस्तु प्राप्त होने. पर, अमुक क्षेत्र-स्थान, काल, प्रहर आदि एव किसी भाव-विशेष के होने पर ही आहार ग्रहण करूंगा, इसे अभिग्रह कहा जाता है । इसकी अधिक से अधिक छ महीने की अवधि होती है। नियंत समय से पहले अभिग्रह फलित हो जाने पर पहले भी -पारणा किया जा सकता है और नियत समय पूर्ण होने पर तो पारणा हो हो सकता है। यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि अभिग्रहपूति से पहले अभिग्रह को किसी के आगे प्रकट नही किया जाता।" ... (ख) निविकृतिक प्रत्याख्यान-जो पदार्थ मन में विकार उत्पन्न करने वाले है, ऐसे भोज्य पदार्थो को विकृतिक कहते है। विकृतिक मे दूध, दही, घी, तेल, मक्खन, मधु, गुड, मिष्ठान्न प्रादि सभी का समावेश हो जाता है। शरीर-यात्रा के लिए आहार तो ग्रहण करना ही होता है, अतः भोजन मे सात्विकता, का होना जरूरी है। जैसे किसी रुग्ण ,को ऐसी खुराक दी जाती है जिससे उसका जीवन-निर्वाह भी हो जाए और रोग भी न बढे, वैसे ही साधक को ऐसा आहार करना चाहिए जिससे वासना भी न उभरे और जीवन-निर्वाह भी हो जाए। इस तरह .. की तप-विधि का पालन करने से और विकृति-जनक पदार्थों का .. त्याग करने से तप स्वय ही हो जाता है । . . . . इस तरह की जानेवाली तपस्या से सयम की पुष्टि होती है। श्रद्धा एवं विनय भक्ति से सयम की आराधना करना ही धर्मयोग । एक चिन्तन ] [१४३
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy