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________________ वाकीदास की जीवनी से सम्बन्ध रखनेवाली अनेक कहानिया है, जिनमें से कई-एक का 'संग्रह नागरी-प्रचारिणी सभा, काशी, द्वारा प्रकाशित बाकीदास ग्रथावली, भाग १-३, की प्रस्तावनामों में किया गया है। . वाकीदास की कृतियो के नाम इस प्रकार है १ सूर-छतीसी, २ सीह-छतीसी, ३ सुपह-छतीसी, ४ सुजस-छतीसी, ५ सिधराव-छतीसी, ६ हमरीट छतीसी, ७ कुकवि-बतीसी, ८ विदुर-बतीसी, ६ धवलपचीसी, १० वचन-विवेक-पचीसी, ११ कृपण-पचीसी, १२ दातार-बावनी, १३ सतोप-वावनी, १४ कायर-बावनी, १५ वीर-विनोद, १६ भुरजाळ-भूपण, १७ जेहळ-जस-जडाव, १८ मोह-मर्दन, १६ नीतिमजरी, २० चुगल-मुखचपेटिका, २१ कृपए दर्पण, २२ बैसक-वार्ता, २३ वैस वार्ता २४ मावडिया-मिजाज, २५ झमाल-नखसिख और २६ नंगालहरी । ये २६ कृतिया वाकीदास प्रथावली के तीन भागो में प्रका शित हो चुकी है । इनके अतिरिक्त इनकी निम्नलिखित अप्रकाशित रचनाये बताई जाती है- १ कृष्णचद्रिका, २ विरहचद्रिका, ३ चमत्कारचद्रिका, ४ चद्र-दूषण-दर्पण, ५ मानयशो-मडन, ६ वैशाख-वार्ता-सग्रह, (ऋतु वर्णन), ७ महाभारत का अनुवाद, ८ प्रकीर्णक गीत, ६ रस और अलकार का एक नथ, १० वृत्तरत्नाकर भाषा (छदग्रय) । पर इनका सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रथ ख्यात है, जो अब प्रकाशित हो रहा है । बांकीदास-री ख्यात ख्यात में लगभग २००० वातो का सग्रह है। ये बातें छोटे-छोटे फुटकर नोटो के रूप में है। लेखक को जो कोई बात महत्त्वपूर्ण लगी, उसे उसने नोट कर लिया। अधिकाश बातें 'दो तीन अथवा चार पक्तियो की है । दो-तीन पृष्ठो तक जाने वाली बातें कोई बिरली ही है। ख्यात के सम्बन्ध में स्वर्गीय श्री ओझाजी लिखते है "पुस्तक बडे महत्व की है । "ग्रथ क्या है इतिहास का खजाना है। राजपूताना के तमाम राज्यो के इतिहास-सम्बन्धी अनेक रत्न उसमें भरे पडे है ।""उसमें राजपूताना के बहुधा प्रत्येक राज्य के राजानो, सरदारो, मुत्सद्दियो आदि के सम्बन्ध की अनेक ऐसी बातें लिखी है जिनका अन्यत्र मिलना कठिन है । उसमें मुसलमानो, जैनो आदि के सम्बन्ध की भी बहुत सी बातें है। अनेक राज्यो और सरदारो के ठिकानो की वशावलिया, सरदारो के वीरता के काम, राजाओ के ननिहाल, कु वरो के ननिहाल आदि का बहुत कुछ परिचय है । कौन-कौन से राजा कहा-कहा काम आये, यह भी विस्तार से लिखा है । अनेक राजापो के जन्म और मृत्यु के सवत, मास, पक्ष, तिथि आदि दिये है।" [ पुरोहित हरिनारायणजी के नाम प्रोमाजी का पत्र, बाकीदासग्रथावली, भाग ३, की प्रस्तावना में प्रकाशित, पृष्ठ, ६-७ ] इस प्रकार ख्यात-साहित्य में बाकीदास की ख्यात का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। प्रामाणिकता की दष्टि से वह राजस्थान की अन्यान्य सभी ख्यातो की अपेक्षा अधिक विश्वसनीय है।
SR No.010598
Book TitleBankidasri Khyat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarottamdas Swami
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1956
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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