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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व गंगेश झा और दिनेश झा से कवि जी ने संस्कृत व्याकरण में लघु कौमुदी और सिद्धान्तकौमुदी का अध्ययन किया। संस्कृत साहित्य में काव्य और नाटक तथा अनेक गद्य-काव्य पढ़े । साहित्य के सिद्धान्त ग्रन्थों में साहित्य-दर्पण और काव्य - प्रकाश जैसे मूर्धन्य ग्रन्थों का अनुशीलन किया । न्याय ग्रन्थों में तर्क-संग्रह, सिद्धान्त मुक्तावली, तर्क-भाषा और सांख्य तत्त्व कौमुदी ग्रादि ग्रन्थों पर अधिकार प्राप्त किया । एक दिन सम्पूर्ण अमर-कोष भी कण्ठाग्र था । ८६ अध्ययन का तीसरा चरण है- प्राकृत और पाली साहित्य का गम्भीर अध्ययन | प्राकृत वाङमय का अध्ययन कवि जी ने पण्डित बेचरदास जी दोशी से किया है । यह अध्ययन दिल्ली में हुआ । पण्डित हेमचन्द्र जी – जो प्राचार्य श्री ग्रात्माराम जी महाराज के मुख्य शिष्य हैं - प्राकृत के अध्ययन में कवि जी के सहपाठी रहे हैं । कवि जी की प्रतिभा और मेधा शक्ति से पण्डित वेचरदास जी बहुत ही प्रभावित रहे हैं । आज भी कवि जी से उनका अपार स्नेह - भाव है । प्राकृत व्याकरण में कवि जी ने आचार्य हेमचन्द्रकृत प्राकृत व्याकरण पढ़ा । फिर स्वतन्त्र भाव से वररुचि का प्राकृत व्याकरण भी देख गए हैं । प्राकृत साहित्य में कुमारपाल प्रतिवोध, प्राकृत कथा - कोष और समरादित्य कथा जैसे आकर ग्रन्थों का अध्ययन किया । अन्य भी बहुत से ग्रन्थ पढ़े । कवि जी के अध्ययन का चौथा चरण बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है । अब तक के अध्ययन की धारा भिन्न प्रकार की थी और चौथे चरण में आकर वह भिन्न प्रकार से प्रकट हुई । यहाँ तक के अध्ययन में भाषा मुख्य थी, और ग्रागे के अध्ययन में विचारों की प्रधानता रही है । कवि जी ने अपने अध्ययन के चतुर्थ विभाग में वैदिक, बौद्ध और जैनदर्शन का तुलनात्मक अध्ययन प्रारम्भ किया । वैदिक परम्परा के दर्शन में कवि जी ने ऋग्वेद एवं यजुर्वेद का, उपनिषदों में मुख्य एकादश उपनिपदों का, सम्पूर्ण गीता और सम्पूर्ण भागवत का, सम्पूर्ण रामायण और सम्पूर्ण महाभारत का और मुख्य-मुख्य पुराणों का अध्ययन किया है । १२
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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