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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व ८५ कवि जी क्रान्तिकारी भी हैं, कवि जी सुधारक भी हैं, और कवि जी पुराण-पन्थी भी हैं । कवि जी का जीवन प्रवाह की तरह सदा प्रवहमान है । वे जीवन के पुराने मार्गों में सुधार चाहते , जीवन के नये रास्तों को स्वीकार करना चाहते हैं, और अगम्य तत्त्वों के प्रति कवि जी पूर्णतः श्रद्धाशील हैं। कवि जी अपने विचारों में सदा से आशावादी रहे हैं। निराशा के काले वादल उनके धवल जीवन-शशी को आछादित करने में कभी सफल नहीं हुए। एक स्थान पर कवि जी कहते हैं "मनुष्य के सामने एक ही प्रश्न है, अपने जीवन को "सत्यं, शिवं और सुन्दर" कैसे बनाए ? अपने मन की उद्दाम लालसाओं की तृप्ति के लिए पागल वना हा मनुष्य क्या इस प्रश्न को समझने का प्रयत्न करेगा? जिस दिन यह प्रयत्न प्रारम्भ होगा, वह दिन विश्व-मंगल का प्रथम शुभ प्रभात होगा। और मैं समझता हूँ, कि प्रयत्न करने पर वह अवश्य आएगा ही।" कवि जी आदर्शवादी अवश्य हैं । परन्तु वे जितने आदर्शवादी हैं, उससे अधिक वे यथार्थवादी भी हैं। वे कहते हैं "मनुष्य ने सागर के गम्भीर अन्तस्तल का पता लगाया, हिमगिरि के उच्चतम शिखर पर चढ़ कर देखा । आकाश और पाताल की सन्धियों को नाप डाला। परमाणु को चीर कर देखा-सव कुछ देखकर भी वह अपने आप को नहीं देख सका। दूरवीन लगाकर नये-नये नक्षत्रों की खोज करने वाला मनुष्य अपने पड़ौसी की ढहती हुई झोंपड़ी को नहीं देख सका। इसको जीवन का विकास कहा जाए या ह्रास ?" कवि जी आज के अशु-युग के मानव से इस प्रश्न का उत्तर चाहते हैं । कवि जी का यथार्थवाद आगे और भी अधिक स्पष्ट होकर पाया है "दार्शनिको ! भूख, गरीवी और प्रभाव के अध्यायों से भरी हुई इस भूखी जनता की पुस्तक को भी पढ़ो। ईश्वर और जगत् की उलझन को सुलझाने से पहले इस पुस्तक की पहेली को समझने का भी प्रयत्न करो।"
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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