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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व कसौटी दी है, कला दी है। धर्म कितने भी हों, पंथ कितने भी हों, विचार कितने भी हों, वाहर में प्रचारित सत्य कितने भी क्यों न हों ? भय और खतरे जैसी कोई बात नहीं। सव को कसौटी पर परखिए, जाँचिए। वह कसौटी क्या है ? इस प्रश्न के समाधान में प्राचार्य ने कहा-समन्वय-दृटि, विचार-पद्धति, अपेक्षावाद, स्याद्वाद और अनेकान्तवाद ही वह कसौटी है जिस पर खरा, खरा ही रहेगा और खोटा, खोटा ही रहेगा। जिन्दगी की राह में फल भी हैं, और काँटे भी! फूलों को चुनते चलो, और काँटों को छोड़ते चलो। सत्य का संचय करते रहो-जहां भी मिले, और असत्य का परित्याग करते रहो, भले ही वह अपना ही क्यों न हो ? विष यदि अपना है, तो भी मारक है और अमृत यदि पराया है, तो भी तारक है । प्राचार्य हरिभद्र के शब्दों में कहूँ तो कहना होगा "युक्तिमद् वचनं यस्य, तस्य कार्यः परिग्रहः ।" जिसकी वाणी में सत्यामृत हो, जिसका वचन युक्ति-युक्त हो, उसके संचय में कभी संकोच मत करो । सत्य जहाँ भी हो, वहाँ सर्वत्र जैन-धर्म रहता ही है। वस्तुतः सत्य एक ही है। भले वह वैदिक परम्परा में मिले, वौद्ध-धारा में मिले या जैन-धर्म में मिले। प्रत्येक दार्शनिक परम्परा भिन्न-भिन्न देश, काल और परिस्थिति में सत्य को अंश में, खण्ड रूप में ग्रहण करके चली हैं। पूर्ण सत्य तो केवल एक केवली ही जान सकता है। अल्पन तो वस्तु को अंश रूप में ही ग्रहण कर सकता है। फिर यह दावा कैसे सच्चा हो सकता है, कि मैं जो कहता हूँ, वह सत्य ही है, और दूसरे सब झूठे हैं ? वैदिक धर्म में व्यवहार मुख्य है, बौद्ध धर्म श्रवण-प्रधान है, और जैन-धर्म आचार-लक्षी है । वैदिक परम्परा में कर्म, उपासना और ज्ञान को मोक्ष का कारण माना है, वौद्ध धारा में शील, समाधि और प्रज्ञा को सिद्धि का साधन कहा है, और जैन संस्कृति में सम्यग्दर्शन, सम्यग्नान और सम्यक् चारित्र को मुक्ति हेतु कहा गया है। परन्तु सवका ध्येय एक ही है-सत्य को प्राप्त करना।
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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