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________________ ४६ व्यक्तित्व और कृतित्व "परत हा प्रर-मत सहिष्णुता उनके व्यक्तित्व का सहज गुण है । वे अपने सिद्धान्तों की गम्भीर से गम्भीर व्याख्या करते हैं। अपनी बात को खुलकर कहते हैं। पर दूसरों के सिद्धान्तों का तिरस्कार और अपमान कभी नहीं करते ? जैन परम्परा के महापुरुषों का और प्राचार्यों का वे बड़े गौरव के साथ अपने भापणों में और अपने लेखों में उल्लेख करते हैं । परन्तु दूसरी परम्परा के महापुरुषों और प्राचार्यों का कथन भी जव कभी वे करते हैं, तब बड़े आदर के साथ करते हैं। कवि जी की कविताओं में, लेखों में और प्रवचनों में आप यत्र-तत्र सर्वत्र समन्वय-भावना पा सकेंगे। जैन-धर्म के प्रति उनके मन में अडिग श्रद्धा और अचल आस्था होने पर भी वैदिक-धर्म और बौद्ध-धर्म के प्रति भी उनका दृष्टिकोग सर्वथा समन्वयात्मक रहा है, और रहेगा। कवि जी की समन्वयवादी विचारधारा आज की नहीं, वह अतीत में भी थी, वर्तमान में भी है और भविष्य में भी रहेगी, क्योंकि समन्वय कवि जी के व्यक्तित्व का मूल स्वभाव है। लोग प्रायः पूछा करते हैं, कि कवि जी इतने उग्र समन्वयवादी क्यों हैं ? उक्त प्रश्न का सीवा-सादा समाधान यही है, कि जैन-धर्म अनेकान्तवादी दर्शन है। जो अनेकान्तवादी होगा, वह अवश्य ही समन्वयवादी भी होगा ही । समन्वय एकान्तवाद में नहीं, अनेकान्तवाद में ही सम्भवित हो सकता है। एकान्तवादी व्यक्ति सदाप्राग्रह-शील रहता है। अतः वह अपने जीवन में किसी भी प्रकार के समन्वय को पसन्द नहीं कर सकता। इसके विपरीत अनेकान्तवादी विना समन्वय के रह ही नहीं सकता। यदि हमें अनेकान्तवाद को जीवित रखना है, तो समन्वय-भावना को स्वीकार करना ही पड़ेगा। कवि जी की समन्वय वृत्ति इसी अनेकान्त-दृष्टि में से प्रकट हुई है। क्योंकि वे अनेकान्तवादी हैं, इसीलिए वे समन्वयवादी हैं । समन्वय का अर्थ यह नहीं है, कि जगती-तल के समस्त धर्म मिटकर एक हो जाएंगे। समन्वय का अर्थ इतना ही है, कि धर्म के नाम पर-वैर, विरोध, विग्रह, कलह और संघर्ष न हों। हम एक-दूसरे को बुरा न समझे। वर्म तो समता का नाम है। निश्चय ही विषमता, धर्म नहीं हो सकता । धर्मो का परस्पर जो विग्रह है, वह धर्म
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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