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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व में कवि जी का व्यक्तित्व समन्वय खोजता है। कवि जी का समन्वय का भाव अद्वितीय है। अपनी अद्भुत समन्वयता के कारण ही कवि जी का व्यक्तित्व सर्वतोमुखी हो उठा है। स्वयं कवि जी, समन्वय के ज्वलन्त प्रतीक हैं । सन्त, कवि और विचारकइन तीनों का यदि कहीं संगम देखने को मिल सकता है, तो केवल वह कवि जी के व्यक्तित्व में। सव से पहले वे सन्त हैं-साधक हैं । साधकता की पृष्ठभूमि में से ही उनका कवित्व मुखरित होता है। मधुर कवित्व में से उनका प्रखर दार्शनिकत्व प्रकट होकर पाया है। इस प्रकार एक ही व्यक्ति सन्त, कवि और विचारक-कवि जी स्वयं साकार समन्वय हैं। कवि जी का साहित्य किसी एक वर्ग-विशेष का नहीं, समूचे जैन समाज का साहित्य है, वल्कि उसमें सम्पूर्ण भारत की आत्मा बोलती है, क्योंकि उनकी प्रतिभा समन्वयात्मक है। जैन-साहित्य संसार में यदि कवि जी को दैदिप्यमान सूर्य कहा जाता है, तो कोई अत्युक्ति नहीं है। कवि जी अपने युग के प्रमुख समन्वयवादी नेता हैं। उन्होंने अपने युग के समाज, धर्म, दर्शन और साहित्य का गम्भीर चिन्तन एवं मनन किया है। यही कारण है, कि उनके कर्म में, उनकी वाणी में और उनके विचार में समन्वय उभर-उभर कर आया है। कवि जी ने अपने समय की सभी सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक प्रवृत्तियों का समन्वय समय-समय पर अपनी कृतियों में अभिव्यक्त किया है। कवि जी के जीवन में तीन प्रकार का समन्वय परिलक्षित होता है १. धार्मिक समन्वय २. साहित्यिक समन्वय ३. सामाजिक समन्वय धार्मिक समन्वय-कवि जी ने भारत और भारत से बाहर विदेशों के अनेक धर्मो का गम्भीर अध्ययन किया है। वे किसी भी धर्म का अनादर नहीं करते । जैन-धर्म, जैन-संस्कृति और जैन-दर्शन में उनकी अटूट निष्ठा होने पर भी अन्य धर्मों के प्रति वे बहुत सहिष्णु रहते हैं।
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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