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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व रहती है। शासक, शासक भले राजनीति का हो अथवा धर्म का, वह मनुष्य की दुर्बलताओं का एक प्रतीक है। मनुष्य की अपनी दुर्वलताओं से ही शासन का उद्भव होता है। आगमों में देवों का वर्णन विस्तार से वर्णित है। आगमों के पाठक और आगमों के श्रोता इसे स्पष्ट रूपेण जानते हैं, कि भवनपति देवों तथा व्यन्तर देवों पर शासन करने के लिए वहुत-से इन्द्र बताए गए हैं, उनकी उच्छृखल एवं कौतुहल-प्रिय मनोवृति पर कन्ट्रोल करने के लिए ही इन्द्रों की इतनी बड़ी संख्या है। परन्तु जब हम पर के देवों का वर्णन पढ़ते हैं, तव वहाँ इन्द्रों की संख्या घटती जाती है। वारहवें देव-लोक के ऊपर तो इन्द्र पद की व्यवस्था ही नहीं है। कारण स्पष्ट है, कि वहाँ के सभी देव अहमिन्द्र होते हैं। वे स्वयं ही अपने इन्द्र होते हैं, स्वयं ही अपने शास्ता हैं। उनमें किसी भी प्रकार का द्वन्द्व या संघर्प नहीं होता। वे अपना संचालन स्वयं अपने पाप ही करते रहते हैं। इस वर्णन से जीवन का महत्वपूर्ण सिद्धान्त ध्वनित होता है । मनुष्य जव जीवन की उच्च भूमिका पर पहुँच जाता है, तव उसके जीवन को नियंत्रित रखने के लिए किसी शासन की आवश्यकता नहीं रह जाती। वह स्वयं अपना शासक होता है। आगमों में जिन-कल्प और स्थविर-कल्प का वर्णन भी वहुत ही रहस्यपूर्ण है। स्थविर-कल्पी भिक्षुओं के जीवन में कुछ दुर्वलताएँ होती हैं, इससे शासन-व्यवस्था को व्यवस्थित बनाए रखने के लिए इस परम्परा में प्राचार्य, उपाध्याय और प्रवर्तक आदि धर्म-शास्ताओं की व्यवस्था की गयी है। परन्तु जिन-कल्पी भिक्षु के लिए किसी प्रकार की शासन-व्यवस्था नहीं होती। वे अपने आप पर अपना स्वयं का शासन रखते हैं। जो प्रबुद्ध साधक हैं, उनके लिए प्राचार्य के नेतृत्व की आवश्यकता नहीं, क्योंकि वे अपने साधना-पथ में बड़ीबड़ी चट्टानों को तोड़कर अपने गन्तव्य त्याग-मार्ग को प्रशस्त बनाने की क्षमता रखते हैं । इस प्रकार के सजग और सतेज साधक आपदाओं की तूफानी लहरों में वहकर दुःख के सागर में कभी डूवते नहीं और सुख के हिमगिरि पर चढ़कर कभी इठलाते नहीं।
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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