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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व जहाँ-कहीं भी रहेंगे, वहाँ प्रेम, उल्लास और सद्भाव की लहरें ही नजर में पाएगी। मुनियों के सुन्दर विचार नयी राह खोज रहे हैं, युग के अनुसार स्वतन्त्र चिन्तन की वेगवती धारा प्रवाहित हो रही है। अव जमाना करवट वदल रहा है। हमें नये युग का नया नेतृत्व करना है। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अपने उपयोगी पुरातन मूलभूत मंस्कारों की उपेक्षा कर देंगे ? वृक्ष का गौरव मूल में खड़ा रहने में ही है, उसे उखाड़ फेंकने में नहीं । हम देखते हैं कि वृक्ष अपने मूल रूप में खड़ा रहता है और शाखा-प्रशाखाएं भी मौजूद रहती हैं, केवल पत्र ही प्रति वर्ष वदलते रहते हैं। एक हवा के झोंके में हजारों-लाखों पत्ते गिर पड़ते हैं। फिर भी वृक्ष अपने वैभव को लुटता देख कर रोता नहीं। वाग का माली भी वृक्ष कोठूठ रूप में देख कर दुःख की ग्राहें नहीं भरता क्योंकि वह जानता है कि इस त्याग के पीछे नया वैभव है, नवीन जीवन है। इसी प्रकार जैन-धर्म का मूल कायम रहे, शाखा-प्रशाखाएं भी मौजूद रहें। यदि उन्हें काटने का प्रयास किया गया, तो केवल लकड़ियों का ढेर रह जाएगा। अतः उन्हें स्थिर रखना ही होगा। किन्तु नियम-उपनियम रूपी पत्ते जो सड़-गल गए हैं, जिन्हें रूढ़ियों का कीट लग गया है, उनमें समयानुसार परिवर्तन करना होगा । उनके व्यामोह में पड़कर यदि उन्हें कायम रखने का नारा लगाते हो, तो तुम नव-चेतना का अर्थ ही नहीं समझते हो। नया वैभव पाने के लिए पुरातन वैभव को विदा देनी ही होगी। उनको स्तीफा दिए विना जीवन में नव-वसन्त खिल ही नहीं सकता। पतझड़ के समय पुरातन पत्तों को अपनी जगह का मोह त्यागना ही पड़ेगा।" -(३-४-५२) सादड़ी सम्मेलन जिन्दावाद : "करीबन दो साल से जिसकी तैयारी हो रही है, वह साधु-सम्मेलन अव निकट भविप्य में ही सादड़ी में होने जा रहा है। मारवाड़ के ऊंट की तरह हमारे सम्मेलन ने भी वहुत-सी करवटें बदलीं। परम सौभाग्य है कि अब वह सही और निश्चित करवट से बैठ गया है। सादड़ी में चारों तरफ से सन्त-सेना अपने-अपने सेनानी के अधिनायकत्व में
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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