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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व में व्याप्त विग्रह, कलह और संघर्प को देख-सुन कर उन्हें एक प्रकार की मानसिक वेदना रहती थी। वे चाहते थे, कि यदि समाज का एकीकरण हो जाए, तो समाज अपना विकास कर सकता है। अपनी विखरी शक्ति को एकत्रित करके वह महान कार्य कर सकता है । - सन् १९५० के अपने व्यावर वावास में कवि जी महाराज के मन में यह प्रवल भावना उत्पन्न हुई, कि समाज का एकीकरण होना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है। अतः आपने अपना कार्य-क्षेत्र राजस्थान को बनाया। सादड़ी सम्मेलन से पूर्व निरन्तर दो वर्षों तक आप राजस्थान में घूमे-फिरे। सम्मेलन के लिए पृष्ठ-भूमि तैयार की। सन्त-सम्मेलन को सफल करने के लिए आपने इतना घोर श्रम किया कि अजमेर में बहुत दिनों तक अस्वस्थ रहे। परन्तु समाज के एकीकरण की वलवती भावना ने और गहरी निष्ठा ने स्वास्थ्य की जरा भी चिन्ता नहीं की। आपने अपने ओजस्वी प्रवचनों से और तेजस्वी लेखों से संघटन के लिए, जन-जन के प्रसुन मानस को प्रवुद्ध किया। श्रावकों के मन में यह भावना जागृत की, कि सम्मेलन का होना बहुत ही आवश्यक है। दूसरी ओर आपने गुलावपुरा के 'स्नेह-सम्मेलन' में तथा सादड़ी को ज़ाते हुए 'अजमेर' में और व्यावर में एकत्रित सन्त मुनिवरों से सादड़ी सम्मेलन के विषय में खुलकर विचार-विनिमय भी किया । दूसरों के विचार सुने और अपने स्पष्ट विचार भी दूसरों के सम्मुख रखे । उस समय के कुछ प्रवचनों और लेखों की झाँकी मैं यहाँ पाठकों की जानकारी के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ। ये प्रवचन एवं लेख - 'जैनप्रकाश' में प्रकाशित हो चुके हैं - सम्मेलन के पथ पर: ___ "साधु-सम्मेलन की शुभ वेला जैसे-जैसे समीप होती जाती है, वैसे-वैसे हम साधु लोग उससे दूर भागने की कोशिश करते हैं। साधुसम्मेलन से, अर्थात् अपने ही सधर्मी और अपने ही सकर्मी बन्धुओं से हम इतना भयभीत क्यों होते हैं ? इस गम्भीर प्रश्न का उत्तर कौन दे सकता है ?
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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