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________________ २४ व्यक्तित्व और कृतित्व को वाहरी उपादानों से सजाकर अभिव्यक्त करता है, तो सन्त अपने मानस की समत्व-मूलक प्रशस्त भावनाओं द्वारा जन-जीवन को संस्कारित करता है! किसी भी मनुष्य की वाणी में प्रोजस् तभी आता है, जबकि वह अपने जीवन की प्रयोगशाला में से ढलकर खरा निकले। वाचिक बल की सफलता व्यक्ति के साधना-मूलक जीवन की यथार्थता पर ही अवलम्बित है। जीवन विकास पर अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार ही अनुभवशील व्यक्तित्व को है। गम्भीर चिन्तन ही संस्कृत व्यवहार का कारण है। विचारों की परिपक्वता ही व्यक्ति के व्यक्तित्व को चिर जीवित रख सकती है। कविवर मुनिश्री अमरचन्द्र जी महाराज के प्रवचन सुनने का सौभाग्य जिनको मिला है, और उनके गम्भीर विचारों के अध्ययन का सुअवसर जिनको मिला है, वे लोग उक्त तथ्य को भली-भाँति समझ सकते हैं। मुझे कहना चाहिए कि कवि जी महाराज न केवल सन्त ही हैं, अपितु वे एक कलाकार भी हैं । कलाकार का सरस मानस उन्हें मिला है। तभी तो उनकी मधुर वाणी का प्रत्येक स्वर श्रोताओं की हृदय-तन्त्री के तारों को झंकृत कर देता है। वे विचारों के सम्नाट हैं, वे वाणी के वादशाह हैं। गम्भीर से गम्भीरतम उलझनों को उनकी कला सरलता के साथ में सुलझा देती है। संयमशील सन्त में विचारों की संस्कृति का और वाणी की कला का इतना उदात्त निखार आया है, जो अपने आप में बे-जोड़ है, अनोखा है, अद्भुत है। कविवर का जीवन-विचार की संस्कृति का और वाणी की कला का सुन्दर, मधुर और मनोहर संगम वन गया है। संयम के धरातल पर संस्कृति और कला की जिस ज्योति का आविर्भाव हुआ है, जनता उसी को 'कवि जी' नाम से जानती है । ___ संस्कृति का वे प्रसार चाहते हैं, कला का वे प्रचार चाहते हैं, परन्तु संयम के माध्यम से, संयम के आधार से। क्योंकि विना संयम के संस्कृति, विकृति बन सकती है, और विना संयम के कला, विलास बन सकती है । अतः कवि जी संयम-मूलक संस्कृति तथा संयम-मूलक • कला के उपासक हैं। कवि जी महाराज उच्च कोटि के चिन्तक हैं,
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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