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________________ २०६ व्यक्तित्व और कृतित्व आगरा पधारना हया और आगरा संघ की अाग्रह-भरी वावास की प्रार्थना को स्वीकार करके वर्षावास में अपने प्रोजस्वी प्रवचनों द्वारा जैन-जनेतर जनता में धार्मिक और सामाजिक जागृति उत्पन्न की । तभी कुछ सज्जनों ने उपाध्याय थी से कुछ रचनात्मक और ठोस कार्य करने की पवित्र एवं उत्साहपूर्ण प्रेरणा ली। जिसके फलस्वरूप 'सन्मति ज्ञानपीठ' का आगरा में आविर्भाव हुआ। यह कौन नहीं जानता कि उपाध्याय श्री अमरचन्द्र जी महाराज एक सफल प्रवचनकार ही नहीं, बल्कि एक प्रतिभावान् समर्थ साहित्यकार भी हैं। आप जैन-समाज के एक युगान्तरकारी कवि, मौलिक एवं विचार-प्रधान निवन्धकार, सफल आलोचक, सुयोग्य अनुवादक एवं सम्पादक और जैन-संस्कृति के अभिनव गायक हैं। जैन दर्शन और आगम-साहित्य के प्रमुख विद्वानों में आपकी परिगणना है। जैनसाहित्य में आलोचनात्मक शैली से धार्मिक तथा दार्शनिक विचारों को जनता के समक्ष रखने का उल्लेखनीय श्रेय आपको प्राप्त है । आपकी विद्वत्ता एवं उदार दृष्टि से जैनेतर विद्वान् भी समय-समय पर बहुत प्रभावित होते रहे है। इस प्रकार उपाध्याय श्री जी का विचार-क्षेत्र और कार्य-क्षेत्र सदा से ही व्यापक और विशाल रहा है। इसी व्यापक दृष्टिकोण को लेकर आप साहित्य-सेवा करते रहे हैं। उपाध्याय श्री जी बहुत दिनों से प्रामाणिक एवं मौलिक साहित्य के प्रचार तथा प्रसार के लिए किसी प्रामाणिक संस्था की नितान्त आवश्यकता अनुभव करते थे । फलतः आपके उपदेश से एवं आपकी प्रेरणा से 'सन्मति ज्ञानपीठ' के नाम से प्रस्तुत संस्था इसी वर्षावास में संस्थापित हुई। संस्था के उद्घाटन के समय 'साहित्य की महत्ता पर' उपाध्याय श्री जी ने संघ के समक्ष जो विद्वत्तापूर्ण प्रवचन दिया था, उसका कुछ संक्षिप्त सार इस प्रकार से है, जो नीचे दिया जा रहा है "मानव-जाति की आध्यात्मिक और भौतिक, सभी प्रकार की समुन्नति का एक मात्र सफल सावन-साहित्य ही है। किसी भी देश, जाति, धर्म और संस्कृति का उत्थान उसके श्रेष्ठ साहित्य पर ही अवलम्बित है। विश्व के साहित्य में और विशेपतः भारतीय साहित्य
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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