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________________ सम्मति ज्ञानपीठ 'मानव-जीवन को प्रगतिशील एवं आदर्श बनाना जैन धर्म का मुख्य ध्येय है । इस परम रमणीय ध्येय के प्रसार का साधन संत्साहित्य ही हो सकता है। साहित्य के विना हम अपनी संस्कृति, धर्म और समाज की प्रगतिशीलता का परिचय मानव-संसार को कैसे दे सकते हैं ? . इस बुद्धिवादी प्रगतिशील युग में सफलता प्राप्त करने का एक ही आधार है कि प्राचीन जैन-साहित्य का संशोधन तथा अन्वेषण और नवीन साहित्य का सर्जन किया जाए। प्राचीन साहित्य का . प्रकाशन नव्य भाषा, नूतन शैली और अभिनव संपादन पद्धति से होना चाहिए : जैन-धर्म के विश्व-जनीन तत्त्वों को लेकर उन पर अद्यतन शैली से विवेचन एवं भाष्य किया जाए। अहिंसा, अनेकान्त और अपरि- ग्रह जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर स्वतंत्र ग्रन्थों की रचनां राष्ट्र-भाषा हिन्दी में होनी चाहिए। . यही है, वह मार्ग, जिस पर चलकर हम जैन-धर्म के विपुल एवं विशाल साहित्य द्वारा जन-कल्याणं में सक्रिय योग दे सकते हैं.। परन्तु इस महान कार्य की पूर्ति के लिए एक विशाल प्रकाशन संस्था की आवश्यकता थी, जो किसी सुयोग्य विद्वान् द्वारा समय-समय पर दिशा-सूचन प्राप्त करती रहे। ज्ञानपीठ का आविर्भाव : ... - परम सौभाग्य की बात है कि आगरा संघ के पुण्योदय से सन् १९४५ में कविरत्न उपाध्याय श्रद्धेय श्री अमरचन्द्र जी महाराज का
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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