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________________ २०२ . व्यक्तित्व और कृतित्व दुर्वलता का परिणाम यह हुआ कि उसे इसी चक्कर में फंस कर मर जाना पड़ा । उसने परिवार को और साम्राज्य को भी धूल में मिला दिया और इस प्रकार अपने असन्तोप के कारण अपना सर्वनाश कर लिया। x __ "कहाँ है, अाज भारतीय तरुणों के चहरे पर वह चमक ? कहाँ गयी वह भाल पर उद्भासित होने वाली आभा ? कहाँ गायब हो गयी नेत्रों की वह ओजस्विता ? सभी कुछ तो वासना की आग में जल कर राख बन गया । आज नैसर्गिक सौन्दर्य के स्थान पर पाउडर और लेवेंडर आदि कृत्रिम उपकरणों के द्वारा सुन्दरता पैदा करने का प्रयत्न किया जाता है, पर मुर्दे का शृङ्गार क्या उसकी शोभा बढ़ाने में समर्थ हो सकता है ? ऊपर से पैदा की हुई सुन्दरता जीवन की असली सुन्दरता नहीं है । ऐसी कृत्रिम सुन्दरता का प्रदर्शन करके आप दूसरों को भ्रम में नहीं डाल सकते। अधिक से अधिक यह हो सकता है कि आप स्वयं भ्रम में पड़ जाएं। कुछ भी हो, यह निश्चित है कि उससे कुछ वनने वाला नहीं है। एक वृक्ष सूख रहा है, उसके भीतर जीवन-रस नहीं रहा हैतव कोई भी रंगरेज या चित्रकार उसमें वसन्त लाना चाहेगा, तो रंग पोत कर वसन्त नहीं ला सकेगा। उसके निष्प्राण सूखे पत्तों पर रंग पोत देने से वसन्त नहीं आने का। वसन्त तो तव आएगा, जव जीवन में हरियाली होगी। उस समय एक भी पत्ते पर रंग लगाने की आवश्यकता नहीं होगी। वह हरा-भरा वृक्ष अपने-आप ही अपनी सजीवता के लक्षण प्रकट कर देगा। इसी प्रकार रंग पोत लेने से जीवन के वसन्त का आगमन नहीं हो सकता । वसन्त तो जीवन-सत्त्व के मूलाधार से ही प्रस्फुटित होता है। और वह जीवन-सत्त्व 'ब्रह्मचर्य' है।" "विचार कीजिए, किसी के पास सम्पत्ति है। वह सम्पत्ति आखिर समाज में से ही तो ली गयी है। वह आकाश से तो नहीं बरसी
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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