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________________ बहुमुखी कृतित्व " दुर्भाग्य से सब धर्मो में जहर के कीटाणु लग गए हैं, और उन्होंने इतना प्रवल रूप धारण कर लिया है कि जो लोग दूसरों को भी रोटी मुहय्या करते हैं, जो सर्दी और गर्मी सहन करके अपने जीवन को घुला देते हैं, जो सब से ज्यादा श्रम करके उत्पादन करते हैं, उनकी प्रतिष्ठा को खत्म कर दिया ! जव उनकी प्रतिष्ठा खत्म हो गयी, तो उन्होंने समझ लिया कि हम हीन है, नीच है, बुरे है और पापी हैंऔर हमने पाप का काम ले लिया है ! दूसरा वर्ग जो विचारकों का था, वह धर्म और संस्कृति के नाम पर आगे वढ़ गया । कोई पैसे के वल पर आगे बढ़ गया, और कोई बुद्धि के वल पर उसने अपनेअपने दृष्टिकोण बना लिए और वह समाज में प्रभुत्व भोगने लगा । उसने समझ लिया कि उत्पादक वर्ग नीचा है और वह पाप कर रहा है । इस रूप में मजदूर और किसान गुनहगार हैं और महापापी हैं । । २०१ नतीजा यह हुआ कि किसान और श्रमिक लोग आज अपनी ही निगाहों में गिर गए हैं । उन्हें न तो अपने प्रति श्रद्धा है और न अपने धन्धे के प्रति । उन्होंने प्रतिष्ठा के भाव खो दिए हैं और वह महत्त्वपूर्ण पद जो जनता की आँखों में ऊँचा होना चाहिए था, नीचा हो गया है और उस पद के विषय में किसी को रस नहीं रह गया है ।" X x X “सन्तोष को कायरों का लक्षण समझना तो अज्ञान है । अपनी लालसाओं पर नियंत्रण स्थापित करना सन्तोप कहलाता है और लालसाग्रों पर नियंत्रण करने के लिए अन्तःकरण को जीतना पड़ता है । अन्तःकरण को जीतना कायरों का काम नहीं है, संयम की उत्कट साधना है । इस विषय में कहा गया है कि 'एक मनुष्य विक्ट संग्राम करके लाखों योद्धाओं पर विजय प्राप्त करता है, तो निस्सन्देह वह वीर है । किन्तु जो अपनी अन्तरात्मा को जीतने में सफल हो जाता है, वह उससे भी बढ़कर वीर है । अन्तः करण को जीतने वाले की विजय उत्तम और प्रशस्त विजय है । '. रावण बड़ा विजेता था । मानते थे और कहते हैं, वह अपने किन्तु वह भी अपने अन्तःकरण को लालसाग्रों पर नियंत्रण कायम नहीं २६ संसार के वीर पुरुप उसकी धाक समय का असाधारण योद्धा था । अपने काबू में न कर सका, अपनी कर सका । और उसकी इस
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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