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________________ जीवन-चरित्र जीवन-चरित्र को गद्य-काव्य के अन्तर्गत माना गया है। इस गद्य में कल्पना का सर्वथा अभाव रहता है। जीवन का सत्य चित्र ही सहज रूप से उपस्थित कर दिया जाता है । यद्यपि इतिहास में व्यक्तियों और घटनाओं का सत्य विवरण रहता है, तथापि जीवन-चरित्र से उसका अन्तर है। जीवन चरित्र साहित्य का वह अंग है, जिसका लक्ष्य रसास्वाद माना गया है। इतिहास का काम केवल सच्चा विवरण उपथित करना होता है। इतिहास में अनेक व्यक्तियों एवं घटनाओं तथा तिथिक्रम की प्रधानता रहती है, जो जीवन-चरित्र में नहीं होती। जीवन-चरित्र में एक ही व्यक्ति प्रधान होता है, और समस्त घटनाएँ उसी के आस-पास घूमती हैं । जीवन-चरित्र साहित्य का एक आवश्यक अंग है। जीवन-चरित्र गद्य का एक आवश्यक अंग है। इसमें लेखक किसी भी विशिष्ट व्यक्ति के जीवन का अंकन, मेधुर भापा और सुन्दर शैली में प्रस्तुत करता है, जिसको पढ़कर पाठक अपने जीवन के लिए अादर्श स्थिर करते हैं। जीवन-चरित्र के लेखक को दो बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना होता हैं -प्रथम उसे यह ध्यान रखना होता है कि चरित्र-नायक के जीवन की कोई घटना छूट न जाए और चरित्रनायक के जीवन की किसी घटना का अतिरंजित वर्णन न हो जाए। चरित्र-लेखक पर दोहरा उत्तरदायित्व रहता है। एक ओर चरित्रनायक के जीवन की यथार्थ घटनाओं का वर्णन दूसरी ओर पाठकों के सम्मुख चरित्र-नायक की वारतविक शिक्षाओं का एवं आदर्शों का उल्लेख।
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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