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________________ १६६ व्यक्तित्व और कृतित्व सदाचार के बल पर क्तिनी ऊँची दशा को पहुँचे हैं ? आज इनके चरणों में देव भी वन्दन करते हैं।" "भगवन्, मृत्यु तो आएगी ही.......!" "अवश्य पाएगी!" "हाँ, तो मृत्यु के अनन्तर भगवन् , मैं कहाँ जन्म लूँगा ?" "नरक में, और कहाँ ?" "भगवन, नरक!" "हाँ, नरक!" "आपका भक्त, और नरक !" "क्या कहा, मेरा भक्त ?" "हाँ, आपका भक्त ।" "झूठ बोलते हो, नरेश ! मेरा भक्त होकर, क्या कोई निरीह प्रजा का शोषण कर सकता है, वासनाओं का गुलाम बन सकता है, हार और हाथी जैसे जघन्य पदार्थों के लिए रण-भूमि में करोड़ों मनुष्यों का संहार कर सकता है ? ...." कभी नहीं । मेरी भक्ति क्या, अपने दुष्कर्मो की ओर देखो। जीवन का सदाचार ही मनुष्य को नरक से वचा सकता है, और कोई नहीं! भक्ति में और भक्ति के ढोंग में अन्तर है राजन् !"
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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