SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कवि जी की काव्य-कला - - पद्य-काव्य की शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार 'कविता' मानवजीवन की कलापूर्ण विवेचना है जो स्वरूप को कुरूप से पृथक करती है, सौन्दर्य की सुन्दर झांकी प्रस्तुत करती है, और जीवन के नवजागरण के लिए नयी चेतना, नयी स्फति का नूतन संजीवन रस का संचार करती है। इस परिभाषा की पुष्टि प्रसिद्ध पाश्चात्त्य समीक्षक 'वाल्टर पेटर' की कविता-सम्बन्धी समीक्षा से भी हो जाती है। कविता में 'सत्' कितने अंशों में विद्यमान है, इसका अनुसंधान करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि 'सत्' की प्रेरणा मानव हृदय की स्वाभाविक वृत्ति है। मानव की अन्तरवृत्ति सदाचारण, सद्धर्म तथा सत्प्रवृत्ति आदि सद्गुणों से तृप्त होती है और विपरीत अवगुणों से घृणा होती है । इस दृष्टि से हम कविता को मानव के अन्तःकरण का प्रतिविम्ब मानकर, उसे 'सत्' से पृथक् नहीं मान सकते। कवि श्री जी की काव्य कला की दिव्य किरण, जो उनकी 'सत्य हरिश्चन्द्र' नामक रचना में प्रस्फुटित हुई है, वह उपरिकथित परिभाषा की दृष्टि से एक पूर्ण रचना है। और वह मानव को जीवन-संग्राम की ओर अग्रसर होने के लिए अपेक्षित पृष्ठ-भूमि तैयार करने में भी विशेष महत्व रखती है। हरिश्चन्द्र का जीवन मानव-जीवन में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। कवि श्री जी की वहु-मुखी प्रतिभा ने उसे अपनी सहज अनुभूति, करुणा, सेवा और चारित्र-वल के द्वारा अत्यधिक सुन्दर बना दिया है। 'स्वान्तःसुखाय' की सीमा में हम इसे 'बहुजन हिताय, वहुजन सुखाय' रचना मानेंगे। ___कवि श्री जी का कवि हृदय सत्य के महत्व को मानव-जीवन में एक पल के लिए भी भूल नहीं पाता है । मिट्टी का पुतला--मानव
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy