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________________ १२ प्रतिक्रमण सूत्र । खाँसना, छींकना, अँभाई लेना, डकारना, अपान वायु का सरना, सिर आदि का घूमना, पित्त बिगड़ने से मूर्छा का होना, अङ्ग का सूक्ष्म हलन-चलन, कफ-थूक आदि का सूक्ष्म झरना, दृष्टि का सूक्ष्म संचलन-ये तथा इनके सदृश अन्य क्रियाएँ जो स्वयमेव हुआ करती हैं और जिनके रोकने से अशान्ति का सम्भव है उनके होते रहने पर भी काउम्सग्ग अभङ्ग ही है। परन्तु इनके सिवाय अन्य क्रियाएँ जो आप ही आप नहीं होती-जिन का करना रोकना इच्छा के अधीन है-उन क्रियाओं से मेरा कायोत्सर्ग अखण्डित रहे अर्थात् अपवादभूत क्रियाओं के सिवाय अन्य कोई भी क्रिया मुझसे न हो और इससे मेरा काउम्सग्ग सर्वथा अभङ्ग रहे यही मेरी अभिलाषा है । (काउम्सग्ग का काल-परिमाण तथा उसकी प्रतिज्ञा )। मैं अरिहंत भगवान् को 'नमो अरिहंताणं' शब्द द्वारा नमस्कार करके काउस्सग्ग को पूर्ण न करूँ तब तक शरीर से निश्चल बन कर, वचन से मौन रह कर और मन से शुभ ध्यान धर कर पापकारी सब कामों से हटजाता हूँ-कायोत्सर्ग करता हूँ। ८-लोगस्स सूत्र। * लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइस्स, चउवीसं पि केवली ॥१॥ * लोकस्योद्योतकरान् धर्मतीर्थकरान् जिनान् । अर्हतः कीर्तयिष्यामि चतुर्विशतिमपि केवलिनः ॥ १॥
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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