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________________ अन्नत्थ ऊससिएणं। सूक्ष्म दृष्टि-संचार' एवमाइएहिं ' इत्यादि ' आगारेहिं 'आगारों से 'अन्नत्थ' अन्य क्रियाओं के द्वारा 'मे' मेरा 'काउस्सग्गो' कायोत्सर्ग 'अभग्गो' अभंग [ तथा] 'अविराहिओ' अखण्डित 'हुज्ज' हो। ___ 'जाव' जब तक 'अरिहंताणं' अरिहंत ' भगवंताणं' भगवान् को ‘नमुक्कारेणं' नमस्कार करके [ कायोत्सर्ग ] 'न पारेमि' न पारूँ ‘ताव' तब तक — ठाणेणं' स्थिर रह कर · मोणेणं' मौन रह कर 'झाणेणं' ध्यान धर कर 'अप्पाणं' अपने 'कार्य' शरीर को [अशुभ व्यापारों से · वोसिरामि ' अलग करता हूँ। भावार्थ--(कुछ आगारों का कथन तथा काउस्सग्ग के अखण्डितपने की चाह ) । श्वास का लेना तथा निकालना, १–'आदि' शब्द से नीचे लिखे हुए चार आगार और समझने चाहियेः-(१) आग के उपद्रव से दूसरी जगह जाना (२) बिल्ली चूहे आदि का ऐसा उपद्रव जिससे कि स्थापनाचार्य के बीच बार बार आड पड़ती हो इस कारण या किसी पञ्चेन्द्रिय जीव के छेदन-भेदन होने के कारण अन्य स्थान में जाना (३) यकायक डकैती पड़ने या राजा आदि के सताने से स्थान बदलना (8) शेर आदि के भय से, साँप आदि विषले जन्तु के डंक से या दिवाल आदि गिर पड़ने की शङ्की से दूसरे स्थान को जाना । ___ कायोत्सर्ग करने के समय ये आगार इसलिये रखे जाते हैं कि सब की शक्ति एक सी नहीं होती । जो कमताकत व डरपोक हैं वे ऐसे मौके पर इतने घबरा जाते हैं कि धर्मध्यान के बदले आर्तध्यान करने लगते हैं; इस लिये उन अधिकारियों के निमित्त ऐसे आगारों का रक्खा जाना आवश्यक है। आगार रखने में अधिकारि-भेद ही मुख्य कारण है ।
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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