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________________ १८८ प्रतिक्रमण सूत्र । विगइ आदि जो चौदह नियम लिये हैं, इस पच्चक्खाण से सायंकाल में उस का संक्षेप किया जाता है। ५२-संथारा पोरिसी। । निसीहि, निसीहि, निसीहि, नमो खमासमणाणं गोयमाईणं महामुणीणं । [इस के बाद नमुक्कार-पूर्वक 'करेमि भंते' सूत्र तीन बार पढ़ना चाहिये । भावार्थ-नमस्कार ।] पाप-व्यापार के बार बार निषेधपूर्वक श्रीगौतम आदि क्षमाश्रमण महामुनिओं को नमस्कार हो । * अणुजाणह जिद्विज्जा! अणुजाणह परमगुरु !; गुरुगुणरयणहिँ मंडियसरीरा । बहुपडिपुन्ना पोरिसि, राइयसंथारए ठामि ॥१॥ भावार्थ-[संथारा के लिये आज्ञा।] हे श्रेष्ठ गुणों से अलस्कृत परम गुरु ! आप मुझ को संथारा (शयन) करने की निषिध्य, निषिध्य, निषिध्य, नमः क्षमाश्रमणेभ्यः गौतमादिभ्यो महामानभ्यः । * अनुजानीत ज्येष्ठार्याः! अनुजानीत परमगुरुवः !, गुरुगणरत्नर्माण्डतशरीराः । बहुप्रतिपूर्णा पौरुषी, रात्रिके सस्तारके तिष्ठामि ॥१॥
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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