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________________ पच्चक्खाण सूत्र। १७५ ५१-पच्चक्खाणं सूत्र । दिन के पच्चक्खाण । [ (१) नमुक्कार सहिअ मुट्ठिसहिय पच्चक्खाण।] 1 उग्गए सूरे, नमुक्कारसहिअं मुट्ठिसहिअंपच्चक्खाई, चउव्विहंपि आहारं-असणं, पाणं, खाइमं, साइमं; अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरई। उद्गते सूर्य, नमस्कारसहितं मुष्टिसहितं प्रत्याख्याति चतुर्विधमप्याहराम् , मशनं, पानं, खादिम, स्वादिमम्, अन्यत्रानाभोगेन, सहसाकारेण, महत्तराकारण, सर्वसमाधिप्रत्ययाकारेण, व्युत्सृजति । १-पच्चक्खाण के मुख्य दो भेद हैं:-(१) मूलगुण-पच्चक्खाण और (२) उत्तरगुण-पच्चक्खाण । इन दो के भी दो दो भेद हैं:-(क) सर्व-मूलगुण-पच्च क्खाण और देश-मूलगुण-पच्चक्खाण । (ख) सर्व-उत्तरगुण-पच्चक्खाण और देश-उत्तरगुण-पच्चक्खाण । साधुओं के महाव्रत सर्व-मूलगुण-पचक्खाण और गृहस्थों के अणुव्रत देश-मूलगुण-पच्चक्खाण हैं । देश-उत्तरगुण-पच्चक्खाण तनि गुणवूत और चार शिक्षाबूत हैं जो श्रावकों के लिये हैं । सर्वउत्तर-गुण-पच्चक्खाण 'अनागत' आदि दस प्रकार का है जो साधु-श्रावक उभय के लिये है । वे दस भेद ये हैं:अनागत-पर्युषणा आदि पर्व में किया जाने वाला अट्ठम आदि तप उस पर्व से पहले ही कर लेना जिस से कि पर्व में ग्लान, वृद्ध, गुरु आदि की सेवा निर्वाध की जा सके। अतिक्रान्त-पर्व में वैयावृत्य आदि के कारण तपस्या न हो सके तो पीछे से करना। ३. कोर्टिसहित-उपवास आदि पच्चक्खाण पूर्ण होने के बाद फिर से वैसा ही पच्चक्खाण करना।
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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