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________________ प्रतिक्रमण सूत्र । ५० - पोसह पारने का सूत्र | सागरचंदो कामो, चंदवर्डिसो सुदंसणो धन्नो । जेसिं पोसहपडिमा, अखंडिआ जीवितेवि ॥ १ ॥ धन्ना सलाहणिज्जा, मुलसा आणंदकामदेवाय । जास पसंसइ भयवं, दढव्वयत्तं महावीरो ॥२॥ पौषव्रत विधि से लिया और विधि से पूर्ण किया । तथापि कोई अविधि हुई हो तो मन, वचन और काय से मिच्छामि दुक्कडं | १७४ भावार्थ - ' सागरचन्द्र कुमार', 'कामदेव', 'चन्द्रावतंस' नरेश और 'सुदर्शन' श्रेष्ठी, ये सब धन्य हैं; क्यों कि इन्हों ने मरणान्त कष्ट सह कर भी पौषधत्रत को अखण्डित रक्खा ॥ १ ॥ 'सुलसा' श्राविका, 'आनन्द' और 'कामदेव' श्रावक, ये सब प्रशंसा के योग्य हैं; जिन के दृढ व्रत की प्रशंसा भगवान् महावीर ने भी मुक्त कण्ठ से की है ॥२॥ :88:34 + सागरचन्द्रः कामश्चन्द्रावतंसः सुदर्शनो धन्यः । येषां पौषध प्रतिमाऽखण्डिता जीवितान्तेऽपि ॥१॥ धन्याः श्लाघनीयाः, सुलसाऽऽनन्दकामदेवौ च । येषां प्रशंसति भगवान् दृढव्रतत्वं महावीरः ॥२॥ J
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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