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________________ भरहेसर की सज्झाय । १५७ ६. मेतार्य-यह एक चागडालिनी का लड़का था, लेकिन किसी सेठ घर पला था। यह परम दयाशील था, यहाँ तक कि किसी सुनार के द्वारा सिर बाँध जाने से दोनों आँखें निकल पान पर भी प्राणों की परवा न करके सोने के जौ चुग जाने वाले क्रौञ्च पक्षी को सुनार के हाथ से इस ने बचाया, और केवल ज्ञान प्राप्त किया। . - श्रावलि गा० ८६७-७७० पृ० ३६७-६६ । १०. रथूलभद्र-नन्द के मन्त्री शकटाल के पुत्र और प्राचार्य संभूतिविजय के शिष्य । इन्हों ने एक बार पूर्व-गिचित कोश नामक गणिका के घर चौमासा किया । वहाँ उस ने इन्हें बहुत प्रलोभन दिया। किन्तु ये उस के प्रलोभन में न आये, उलटय इन्होंने अपने ब्रह्मचर्य की ता से उस को परम-श्राविका बनाया। . प्राब० नि० गा० १२८४ तथा पृ०६५-६। ११. वजस्वामी-अन्तिम दश-पूर्व-धर, आकाशगामिनी विद्या तथा वक्रिय लब्धि के धारक । इन्हों ने बाल्यकाल में ही जाति स्मरणज्ञान प्राप्त किया और दीक्षा ली। तथा पदानुसारिणी लब्धि से ग्यारह अङ्गको याद किया। श्राव० नि० गा. ७६३-७६६, पृ० २६५-९९४ । १२. नन्दिषण-दो हुए । इन में से एक तो श्रेणिक का पुत्र । जो लब्धिधारी और परमतपस्वी था। यह एक बार संयम से भ्रष्ट हो कर वश्या के घर रहा, किन्तु वहाँ रह कर भी ज्ञान-बल से प्रतिदिन दस व्यक्तियों को धर्म प्राप्त करता रहा और अन्त में इस ने फिर से संयम धारण किया। दूसरा नन्दिषेण यह वैयावृत्त्य करने में प्रतिदृढ था । किसी समय इन्द्र ने इस को उस दृढता से चलित करना चाहा, पर -
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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