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________________ प्रतिक्रमण सूत्र । * मम मंगलमरिहंता, सिद्धा साहू सुअं च धम्मो अ । सम्मदिट्ठी देवा, दिंतु समाहिं च वोहिं च ॥४७॥ अन्वयार्थ -- 'अरिहन्ता' अरिहन्त 'सिद्धा' सिद्ध भगवान् 'साहू' साधु 'सुअं' श्रुत-शास्त्र 'च' और 'धम्मो' धर्म 'मम' मेरे लिये 'मंगल' मलभूत हैं, 'सम्मद्दिट्ठी' सम्यग्दृष्टि वाले 'देवा' देव [मुझको] 'समाहिं' समाधि 'च' और 'बोहिं' सम्यक्त्व 'दिंतु' देवें ॥ ४७ ॥ भावार्थ श्री अरिहन्त, सिद्ध, साधु, श्रुत और चारित्र-धर्म, ये सब मेरे लिये मङ्गल रूप हैं। मैं सम्यक्त्वी देवों से प्रार्थना करता हूँ कि वे समाधि तथा सम्यक्त्व प्राप्त करने में मेरे सहायक हों ||१७|| १२४ पडिसिद्ध करणे, किच्चायमकरणे पडिक्कमणं । reer a तहा, विवरीयपरूवणाए अ ||४८ ॥ अन्वयार्थ --- 'पडिसिद्धाणं निषेध किये हुए कार्य को 'करणे' करने पर 'किच्चाणं' करने योग्य कार्य को 'अकरणे' नहीं करने पर ' असणे' अश्रद्धा होने पर 'तहा' तथा 'विवरीय' विपरीत 'परूवणाए प्ररूपणा होने पर 'पडिक्कमणं ' प्रतिक्रमण किया जाता है ||४८ || * मम मङ्गलमर्हन्तः, सिद्धाः साधवः श्रतं च धर्मश्च । सम्यग्दृष्टयो देवा, ददतु समाधिं च बोधिं च ॥४७॥ + प्रतिषिद्धानां करणे, कृत्यानामकरणे प्रतिक्रमणम् । अश्रद्धाने च तथा, विपरीतप्ररूपणायां च ॥४८॥
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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