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________________ ९६ प्रतिक्रमण सूत्र । ___ (१) क्वाँरी कन्या या वेश्या के साथ सम्बन्ध जोड़ना, (२) जिसको थोड़े वख्त के लिये किसी ने रक्खा हो ऐसी वेश्या के साथ रमण करना, (३) सृष्टि के नियम विरुद्ध काम क्रीडा करना, (४) अपने पुत्र-पुत्री के सिवाय दूसरों का विवाह करना कराना और (५) कामभोग की प्रबल आभिलाषा करना ॥ १५ ॥ १६ ॥ [पाँचवें अणुव्रत के अतिचारों की आलोचना ] * इत्तो अणुव्वए पं,-चमम्मि आयरिअमप्पसत्थम्मि । परिमाणपरिच्छेए, इत्थ पमायप्पसंगणं ॥१७॥ धण-धन्न-खित्त-वत्थू, रूप्प-सुवन्ने अकुविअपरिमाणे । दुपए चउप्पयम्मि य, पडिक्कमे देसि सव्वं ॥१८॥ अन्वयार्थ-~-'इत्तो' इसके बाद 'इत्थ' इस 'परिमाणपरिच्छेए' परिमाण करने रूप 'पंचमम्मि' पाँचवें 'अणुव्वए' अणुबूत के विषय में 'पमायप्पसंगणं' प्रमाद के वश होकर "अप्पसत्थम्मि' अप्रशस्त 'आयरिअं' आचरण हुआ; * इतोऽणुव्रते पञ्चमे, आचरितमप्रशस्ते । परिमाणपरिच्छेदे, प्रमादप्रसङ्गेन ॥ १० ॥ धन-धान्य-क्षेत्र-वास्तु-रूप्य-सुवर्णे च कुप्यपरिमाणे । द्विपदे चतुष्पदे च, प्रतिक्रामामि देवसिकं सर्वम् ॥१८॥ इच्छापरिमाणस्स समणोवासएण इमे पंच; धणधनपमाणाइक्कमे वित्तवत्युपमाणाइकमे हिरनसुवन्नपमाणाइकमे दुपयचउप्पयपमाणाइक्कमे कविगपमाणाइक्कमे । [आवश्यक सूत्र, पृष्ठ ८२५]
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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