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________________ ७४ प्रतिक्रमण सूत्र । * इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावाणिज्जाए निसाहिआए । अणुजाणह मे मिउग्गहं । निसीहि अहोकायं कायसंफासं । खमणिज्जो भे किलामो । अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वइक्कतो ? जत्ता भे ? जवणिज्ज च मे ? 'इच्छामि खमासमणो' से 'अणुजाणह' तक बोलने में दोनों बार आधा अङ्ग नमाना-यह दो अवनत, जनमते समय बालक की या दीक्षा लेने के समय शिष्य की जैसी मुद्रा होती है वैसी अर्थात् कपाल पर दो हाथ रख कर नम्र मुद्रा करना—यह यथाजात, 'अहोकायं', 'कायसंफासं', 'खमणिज्जो मे किलामो', 'अप्पकिलंताणं बहुमुभेण भे दिवसो वइकतो ? 'जत्ता भे? अवणिज्जं च भे ? इस क्रम से छह छह आवत्त करने से दोनों वन्दन में बारह आवर्त (गुरु के पैर पर हाथ रख कर फिर सिर से लगाना यह आवर्त कहलाता है) अवग्रह में प्रविष्ट होने के बाद खामणा करने के समय शिष्य तथा आचार्य के मिलाकर दो शिरोनमन, इस प्रकार दूसरे वन्दन में दो शिरोनमन, कुल चार शिरोनमन, वन्दन करने के समय मन वचन और शरीर को अशुभ व्यापार से रोकने रूप तीन गुप्तियाँ 'अणुजाणह मे मिउग्गहं' कह कर गुरु से आज्ञा पाने के बाद अवाह में दोनों बार प्रवेश करना यह दो प्रवेश, पहला वन्दन कर के 'आवस्सिआए' यह कह कर अवग्रह से बाह निकल जाना यह निष्क्रमण । कुल २५ । आवश्यक नियुक्ति गा० १२०२-४ । * इच्छामि क्षमाश्रमण ! वन्दितु यापनीयया नैषेधिक्या । अनुजानीत मे 'मितावग्रहं । निषिध्य (नषेधिक्या प्रविश्य ) अधःकाय कायसंस्पर्श (करोमि)। क्षमणीयः भवद्भिः क्लमः । अल्पक्लान्तानां बहुशुभेन भवतां दिवसो व्यतिप्रान्तः १ यात्रा भवतां ? यापनीयं च भवतां ?
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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