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________________ प्रास्ताविक परिचय पूना के सुप्रसिद्ध भाण्डारकर ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट के ग्रन्थ-संग्रहाध्यक्ष (क्यूरेटर ) श्री पी० के० गोडे महोदय का 'पूना ओरिएएटलिस्ट' भा० २ ० १६६ - १८० में The Asvamedha Performed by Sawai Jaisingh नामक लेख प्रकाशित हुआ था। इसमें उन्होंने जयपुर के महाराजा माधवसिंह ( प्रथम ) के गुरु सदाशिव का उल्लेख करते हुये यह अनुमान किया है कि ये संदाशिव वही थे जिनका नाम 'माधवसिंहार्याशतक' के कर्त्ता श्याम लट्ट ने 'आचारस्मृतिचन्द्रिका' के प्रणेता के रूप में उद्धृत किया है । इस लेख को पढ़ने के कुछ ही दिनों बाद सुहृदूवर पण्डित मनोहरलाल जी शुक्ल से मिलना हुआ और उन्होंने मुझे अपने पूर्वज महाकवि भोलानाथ-रचित 'कर्णकुतूहलम्' नाटक की एक हस्तलिखित प्रति दिखाई। इस प्रति के प्रथम कुतूहल में भट्ट सदाशिव का नाम देख कर उत्सुकता बढ़ी और कुछ अधिक जानकारी प्राप्त करने का मन हुआ। संयोगवश उन्हीं दिनों में भट्ट लक्ष्मीलालजी मिले जो जयपुर के भूतपूर्व भट्टराजाजी के ठिकाने से सम्बद्ध हैं और वहां का कामकाज देखते हैं। उनसे बातचीत करने पर ज्ञात हुआ कि भट्टराजाजी का ठिकाना सदाशिवजी के समय में कायम हुआ था, वे महाराजा माधवसिंह (प्रथम) के साथ यहां आये थे और उनके पिता का नाम रत्नेश्वर था । ये दुम्बर भट्ट और बड़े कर्मकाण्डी ब्राह्मण थे। महाराजा माधवसिंह का सब राज्यकार्य इन्हीं के परामर्श से चलता था । अब, 'कर्णकुतूहलम्' की प्रस्तावना के तथ्य स्पष्ट हो गये तथा अन्यान्य कागज पत्रादि देखने पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि श्री गोडे महोदय का जिन सदाशिव भट्ट से तात्पर्य है वे ये औदुम्बर भट्टजी थे न कि दशपुरज्ञातीय गदाधर पुत्र सदाशिव जो 'आचारस्मतिचन्द्रिका' के कर्त्ता थे । उपर्युक्त सूचनाओं के आधार पर मैंने श्री गोडे महोदय को पत्र लिखा और उन्होंने उदारतापूर्वक इन्हें स्वीकार करते हुये 'कर्ण कुतूहलम' को प्रकाश में लाने का संकेत किया । दुपरान्त श्रीमनोहरलालजी से प्रस्तुत नाटक की प्रति (जो उन्होंने मुझे इन्हीं भोलानाथ प्रणीत 'श्रीकृष्णलीलामृतम' की हस्तलिपि के साथ सहर्ष दे दी) लेकर एतद्विपयक अन्यान्य सामग्री भट्ट श्रीलक्ष्मीलालजा से प्राप्त करके इस लेख का इससे आगे का अंश तैयार कर लिया गया। जब यह सामग्री मैंने अपने विभाग के अध्यक्ष श्रद्धये पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजी महाराज को दिखाई तो उन्होंने 'कर्णकुतूहलम् और 'श्रीकृष्णलीलामृतम्' दोनों ही लघुकृतियों को मन्दिर से प्रकाशित करना स्वीकार कर लिया 1 इस प्रकार ये दोनों रचनायें मुद्रित होकर विद्वत्-समाज के सामने आ रही हैं जिनके प्रणेता कवि भोलानाथ, उनके आश्रयदाता भट्टराजा सदाशिव और मध्यकालीन हिन्दी
SR No.010595
Book TitleKarn Kutuhal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1957
Total Pages61
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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