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________________ ८७८ सुत्तागमे [णिसीहसुत्तं वा णिसीयावेत्ता वा तुयट्टावेत्ता वा असणं वा ४ अणुग्घासेज वा अणुपाएज वा अणुग्घासेंतं वा अणुपाएंतं वा साइजइ ॥ ५४० ॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णयरं तेइच्छं आउदृइ आउटुंतं वा साइजइ ॥ ५४१ ॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अमणुण्णाइं पोग्गलाई अवणीहरइ णीहरंतं वा साइजइ ॥ ५४२ ॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए मणुण्णाई पोग्गलाई उवकिरइ उवकिरतं वा साइजइ ॥ ५४३ ॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णयरं पसुजाई वा पक्खिजाई वा पायंसि वा पक्खंसि वा पुंछंसि वा सीसंसि वा गहाय (उजिहइ वा पविहइ वा) संचालेइ (उजिहेंतं वा पविहेंतं वा) संचालतं वा साइजइ ॥ ५४४ ॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णयरं पसुजायं वा पक्खिजायं वा सोयंसि कर्ट वा कलिंचं वा अंगुलियं वा सलागं वा अणुप्पवेसित्ता संचालेइ संचालेंतं वा साइजइ ॥ ५४५ ॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णयरं पसुजायं वा पक्खिजायं वा अयमित्थित्तिकट्ठ आलिंगेज वा परिस्सएज वा परिचुंबेज वा विच्छेदेज वा आलिंगंतं वा परिस्सयंतं वा परिचुंबतं वा विच्छेदंतं वा साइज्जइ ॥ ५४६ ॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए असणं वा ४ देइ देंतं वा साइजइ ॥ ५४७ ॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए असणं वा ४ पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइजइ ॥ ५४८ ॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देइ देंतं वा साइजइ ॥ ५४९ ॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए वत्थं वा ४ पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइजइ ॥ ५५० ॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए सज्झायं वाएइ वाएंतं वा साइजइ ॥ ५५१ ॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए सज्झायं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइजइ ॥ ५५२ ॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णयरेणं इंदिएणं आकारं करेइ करेंतं वा साइजइ । तं सेवमाणे आवजइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ ५५३ ॥ णिसीहऽज्झयणे सत्तमो उद्देसो समत्तो ॥७॥ अहमो उद्देसो जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा एगो एगाए इत्थीए सद्धि विहारं वा करेइ सज्झायं वा करेइ असणं वा ४ आहारेइ उच्चारं वा पासवणं वा परिहवेइ अण्णयरं वा अणारियं णिहुरे (पिहुणं) अस्सव(म)णपाओग्गं कहं कहेइ कहेंतं वा साइजइ ॥ ५५४ ॥ जे भिक्खू उजाणंसि वा उजाणगिहसि वाः उजाणसालंसि वा णिज्जाणंसि वा णिज्जाणगिहंसि वा णिजाणसालंसि वा एगो
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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