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________________ ८६४ सुत्तागमे [णिसीहसुत्तं पलोएंतं वा साइजइ ॥ ३०८ ॥जे भिक्खू सचित्तक्खमूलंसि ठिच्चा ठाणं वा सेजं वा निसीहियं वा तुयट्टणं वा चेएइ चेएतं वा साइजइ ॥३०९ ॥ जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिचा असणं वा ४ आहारेइ आहारेंतं वा साइज्जइ ॥३१०॥जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा उच्चारपासवणं परिवेइ परिहवेंतं वा साइज्जइ ॥ ३११॥जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं करेइ करेंतं वा साइजइ ॥ ३१२ ॥ जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूले ठिच्चा सज्झायं उद्दिसइ उद्दिसेंतं वा साइज्जइ ॥ ३१३॥ जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूले ठिच्चा सज्झायं समुद्दिसइ समुद्दिसंतं वा साइज्जइ ॥ ३१४ ॥ जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिचा सज्झायं अणुजाणइ अणुजाणंतं वा साइज्जइ ॥ ३१५ ॥ जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलसि ठिच्चा सज्झायं वाएइ वाएंतं वा साइजइ ॥ ३१६ ॥ जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइजइ ॥ ३१७ ॥ जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं परियट्टेइ परियटेंतं वा साइज्जइ ॥ ३१८ ॥ जे भिक्खू अप्पणो संघाडि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा सागारिएण वा सिव्वावेइ सिव्वातं वा साइजइ ॥ ३१९ ॥ जे भिक्खू अप्पणो संघाडिए दीहसुत्ताई करेइ करेंतं वा साइजइ ॥ ३२० ॥ जे भिक्खू पिउमंदपलासयं वा पडोलपलासयं वा बिलपलासयं वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा संफाणिय २ आहारेइ आहारेंतं वा साइजइ ॥ ३२१ ॥ जे भिक्खू पाडिहारियं पायपुंछणं जाइत्ता तमेव रयणिं पञ्चप्पिणिस्सामित्ति सुए पञ्चप्पिणइ पञ्चप्पिणंतं वा साइजइ ॥ ३२२ ॥ जे भिक्खू पाडिहारियं पायपुंछणं जाइत्ता सुए पञ्चप्पिणिस्सामित्ति तमेव रयणिं पञ्चप्पिणइ पञ्चप्पिणतं वा साइजइ ॥ ३२३ ॥ जे भिक्खू सागारियसंतियं पायपुंछणं जाइत्ता तमेव रयणिं पञ्चप्पिणिस्सामित्ति सुए पञ्चप्पिणइ पञ्चप्पिणतं वा साइज्जड ॥३२४ ॥ जे भिक्खू सागारियसंतियं पायपुंछणं जाइत्ता सुए पञ्चप्पिणिस्सामित्ति तमेव रयणि पञ्चप्पिणइ पच्चप्पिणंतं वा साइज्जइ ॥ ३२५ ॥ जे भिक्खू पाडिहारियं दंडयं वा अवलेहणियं वा वेलुसूई वा जाइत्ता तमेव रयणिं • पञ्चप्पिणिस्सामित्ति सुए पञ्चप्पिणइ पञ्चप्पिणंतं वा साइजइ ॥ ३२६ ॥ जे भिक्खू पाडिहारियं दंडयं वा अवलेहणियं वा वेलुसूई वा जाइत्ता सुए पञ्चप्पिणिस्सामित्ति तमेव रयणिं पञ्चप्पिणइ पचप्पिणंतं वा साइज्जइ ॥ ३२७ ॥ जे भिक्खू सागारियसंतियं दंडयं वा अवलेहणियं वा वेलुसूइं वा जाइत्ता तमेव रयणिं पञ्चप्पिणिस्सामित्ति सुए पचप्पिणइ पञ्चप्पिणंतं वा साइजइ ॥ ३२८ ॥ जे भिक्खू सागारियसंतियं दंडयं वा अवलेहणियं वा वेलसूई वा जाइत्ता सुए पचप्पिणिस्सामित्ति तमेव रयणिं . १ संझं।
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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