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________________ उ० ५ मासियमुग्धाइयं] सुत्तागमे ८६३ ॥ २८९ ॥ जे भिक्खू अण्णमण्णस्स अच्छीणि सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोएज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा साइज्जइ ॥ २९० ॥ जे भिक्खू अण्णमण्णस्स अच्छीणि फूमेज वा रएज वा फूमेंतं वा रएंतं वा साइज्जइ ॥ २९१ ॥ जे भिक्खू अण्णमण्णस्स दीहाइं भुमगरोमाई कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइजइ ॥ २९२ ॥ जे भिक्खू अण्णमण्णस्स दीहाइं पासरोमाई कप्पेज वा संठवेज वा कप्पेंतं वा संठवेंतं वा साइज्जइ ॥२९३-१॥ ''केसरोमाई...॥२९३-२॥ जे भिक्खू अण्णमण्णस्स अच्छिमलं वा कण्णमलं वा दंतमलं वा णहमलं वा णीहरेज वा विसोहेज वा णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा साइज्जइ ॥२९४ ॥ जे भिक्खू अण्णमण्णस्स कायाओ सेयं वा जलं वा पंकं वा मलं वा णीहरेज वा विसोहेज वा णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा साइजइ ॥ २९५॥ जे भिक्खू गामाणुगा[मियं] मं दूइजमाणे अण्णमण्णस्स सीसदुवारियं करेइ करेंतं वा साइजइ ॥२९६ ॥ जे भिक्खू साणुप्पए उच्चारपासवणभूमिं साणुप्पए ण पडिलेहइ ण पडिलेहंतं वा साइज्जइ ॥२९७ ॥जे भिक्खू तओ उच्चारपासवणभूमीओण पडिलेहेइ ण पडिलेहंतं वा साइजइ ॥२९८॥ जे भिक्खू खुड्डागंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिट्ठवेइ परिहवेंतं वा साइजइ ॥२९९ ॥ जे भिक्खू उच्चारपासवणं अविहीए परिट्ठवेइ परिठ्ठवेंतं वा साइज्जइ ॥३००॥ जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिद्ववेत्ता ण पुंछइ ण पुंछंतं वा साइजइ ॥३०१॥ जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिद्ववेत्ता कट्टेण वा किलिंचेण वा अंगुलियाए वा सलागाए वा पुंछइ पुंछंतं वा साइज्जइ ॥ ३०२ ॥ जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिट्ठवेत्ता णायमइ णायमंतं वा साइज्जइ ॥ ३०३ ॥ जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिट्ठवेत्ता तत्थेव आयमइ आयमंतं वा साइजइ ॥ ३०४ ॥ जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिठ्ठवेत्ता दूरे आयमइ आयमंतं वा साइजइ ॥ ३०५ ॥ जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिट्ठवेत्ता णावापूराणं आयमइ आयमंतं वा साइजइ ॥ ३०६ ॥ जे भिक्खू अपरिहारिएण परिहारियं वएज्जाएहि अज्जो! तुमं च अहं च एगओ असणं वा ४ पडिग्गाहेत्ता तओ पच्छा पत्तेयं २ भोक्खामो वा पाहामो वा, जे तं एवं वयइ वयंतं वा साइजइ । तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं ॥ ३०७ ॥ णिसीहऽज्झयणे चउत्थो उद्देसो समत्तो॥४॥ पंचमो उद्देसो जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा आलोएज वा पलोएज वा आलोएंतं वा १ कयाइ एगट्ठाणे केण वि कारणेण पारिट्ठावणाऽवसरो ण होज तो दोच्चं तच्चं ठाणं उवओगी होउ त्ति तिण्णि ठाणाई वुत्ताई ति ।
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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