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________________ प० ६ दा० ५ असुरकुमार०] सुत्तागमे जन्ति ? गोयमा ! पजत्तएहिन्तो उववजन्ति, नो अपजत्तएहिन्तो उववजन्ति । एवं जहा ओहिया उववाइया तहा रयणप्पभापुढविनेरइया वि उववाएयव्वा ॥ ३०७ ॥ सक्करप्पभापुढविनेरइयाणं पुच्छा। गोयमा ! एए वि जहा ओहिया तहेवोववाएयव्वा, नवरं समुच्छिमेहिन्तो पडिसेहो कायव्वो। वालुयप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! कओहिन्तो उवत्रजन्ति ? गोयमा ! जहा सकरप्पभापुढविनेरइया, नवरं भुयपरिसप्पेहिन्तो पडिसेहो कायव्वो । पंकप्पभापुढविनेरइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहा वालुयप्पभापुढविनेरइया, नवरं खहयरेहिन्तो पडिसेहो कायव्वो। धूमप्पभापुढविनेरइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहा पंकप्पभापुढविनेरइया, नवरं चउप्पएहिन्तो वि पडिसेहो कायव्वो। तमापुढविनेरइया णं भंते ! कओहिन्तो उववजन्ति ? गोयमा ! जहा धूमप्पभापुढविनेरइया, नवरं थलयरेहिन्तो वि पडिसेहो कायव्वो । इमेणं अभिलावेणं जइ पंचिन्दियतिरिक्खजोणिएहिन्तो उववजन्ति, किं जलयरपंचिन्दिएहिन्तो उववजन्ति, थलयरपंचिन्दिएहिन्तो उववजन्ति, खहयरपंचिन्दिएहिन्तो उववजन्ति ? गोयमा ! जलयरपंचिन्दिएहिन्तो उववजन्ति, नो थलयरेहिन्तो०, नो खहयरेहिन्तो उववजन्ति ॥ ३०८ ॥ जइ मणुस्सेहिन्तो उववजन्ति किं कम्मभूमिएहिन्तो उववजन्ति, अकम्मभूमिएहिन्तो उववजन्ति, अंतरदीवएहिन्तो उववजन्ति ? गोयमा ! कम्मभूमिएहिन्तो उवव जन्ति, नो अकम्मभूमिएहिन्तो उववजन्ति, नो अंतरदीवएहिन्तो उववजन्ति । जइ कम्मभूमिएहिन्तो उववजन्ति किं संखेजवासाउएहिन्तो उववजन्ति, असंखेजवासाउएहिन्तो उववजन्ति ? गोयमा ! संखेज्जवासाउएहिन्तो उववजन्ति, नो असंखेज्जवासाउएहिन्तो उववजन्ति । जइ संखेजवासाउएहिन्तो उववजन्ति किं पज्जत्तएहिन्तो उववजन्ति, अपजत्तएहिन्तो उववजन्ति ? गोयमा ! पज्जत्तएहिन्तो उववजन्ति, नो अपज्जत्तएहिन्तो उववजन्ति । जइ पज्जत्तयसंखेज्जवासाउयकम्मभूमिएहिन्तो उववजन्ति किं इत्थीहिन्तो उववजन्ति, पुरिसेहिन्तो उववजन्ति, नपुंसएहिन्तो उववजन्ति ? गोयमा ! इत्थीहिन्तो उववजन्ति, पुरिसेहिन्तो उववजन्ति, नपुंसएहिन्तो वि उववजन्ति । अहेसत्तमापुढविनेरइया णं भंते ! कओहिन्तो उववजन्ति ? गोयमा ! एवं चेव, नवरं इत्थीहिन्तो पडिसेहो कायव्वो। "अस्सन्नी खलु पढमं दोचं पि सिरीसवा तइय पक्खी। सीहा जन्ति चउत्थि उरगा पुण पंचमि पुढविं ॥ छढिं च इत्थियाओ मच्छा मणुया य सत्तमि पुढविं । एसो परमोवाओ बोद्धव्वो नरगपुढवीणं” ॥ ३०९ ॥ असुरकुमारा णं भंते ! कओहिंतो उववजन्ति ? गोयमा ! नो नेरइएहितो उववजन्ति, तिरिक्खजोणिएहितो
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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