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________________ सुत्तागमे ३२ [ओववाइयसुतं निजुद्धं जुद्धाइजुद्धं मुट्ठिजुद्धं बाहुजुद्धं लयाजुद्धं ईसत्थं छरुप्पवाहं धणुव्वेयं हिरण्णपागं सुवण्णपागं वहखेडं सुत्तखेडं णालियाखेडु पत्तच्छेज कडगच्छेजं सजीवं निजीवं सउणरुयमिति बावत्तरिकलाओ सेहावित्ता सिक्खावेत्ता अम्मापिईणं उवणेहिइ । तए णं तस्स दढपइण्णस्स दारगस्स अम्मापियरो तं कलायरियं विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थगंधमल्लालंकारेण य सकारेहिति सम्माणहिंति स० २ ता विडलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइस्संति २ ता पडिविसजेहिंति । तए णं से दठपइण्णे दारए बाबत्तरिकलापंडिए नवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारसदेसीभासाविसारए गीयरई गंधव्वणकुमले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी वियालचारी साहसिए अलं भोगसमत्थे यावि भविस्सइ । तए णं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो बावत्तरिकलापंडियं जाव अलं भोगसमत्थं वियाणित्ता विउलेहिं अण्णभोगेहिं पाणभोगेहिं लेणभोगेहिं वत्थभोगेहिं सयणभोगेहिं कामभोगेहिं उवणिमंतेहिंति, तए णं से दढपडण्ण दारए तेहिं विउलेहिं अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहिं णो सन्जिहिइ णो रजिहिइ णो गिज्झिहिइ णो मुज्झिहिइ णो अज्झोववजिहिइ, से जहाणामए उप्पले इ वा परमे इ वा कुसुमे इ वा नलिणे इ वा सुभगे इ वा सुगंधे इ वा पोंडरीए इ वा महापोंडरीए इ वा सयपत्ते इ वा सहस्सपत्ते इ वा सयसहस्सपत्ते इ वा पंके जाए जले संयुद्धे णोवलिप्पइ पंकरएणं णोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव दढपइण्णेवि दारए कामेहि जाए भोगेहिं संवुड्ढे णोवलिप्पिहिइ कामरएणं णोवलिप्पिहिइ भोगरएणं णोवलिपिहिइ मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरिजणेणं, से णं तहाख्वाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहि बुज्झिहिइ केवलबोहिं बुज्झित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिइ । से णं भविस्सइ अणगारे भगवंते ईरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी । तस्स णं भगवंतस्स एएणं विहारेणं विहरमाणस्स अणंते अणुत्तरे णिव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवल वरणाणदंसणे समुप्पन्जिहिइ । तए णं से दढपइण्णे केवली बहूई वासाइं केलिपरियागं पाउणिहिइ २ त्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सद्धिं भत्ताई अणमणाए छेएत्ता जस्सट्टाए कीरइ थेरकप्पभावे जिणकप्पभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए केसलोए बंभचेरवासे अच्छत्तगं अणोवाहणगं भूमिसेज्जा फलहसेजा कसेजा परघरपवेसो लद्धावलद्धं परेहिं हीलणाओ खिसणाओ जिंदणाओ गरहणाओ तालणाओ तज्जणाओ परिभवणाओ पव्वहणाओ उच्चावया गामकंटगा बावीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जति तमट्ठमाराहित्ता चरिमेहिं उस्सासणिस्सासेहिं सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं करेहिइ १४ ॥ ३९ ॥ से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तंजहा-आयरिय
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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