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________________ वि०प० स० २० उ०६] सुत्तागमे मउया देसा गुल्या देसा लहुया देसा सीया देसा उसिणा, एवं सत्तफासे पंचवारमुत्तरा भंगसया भवंति । जइ अट्ठफासे देसे कक्खडे देसे मउए देसे गुरुए देसे. लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे ४, देसे कक्खडे देसे मउए देसे गुरुए देसे लहुए देसे सीए देसा उसिणा देसे निद्धे देसे लुक्खे ४, देसे कक्खडे देसे मउए देसे गुरुए देसे लहुए देसा सीया दे(सा)से उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे ४, देसे कक्खडे देसे मउए देसे गुरुए देसे लहुए देसा सीया देसा उसिणा देसे निद्धे देसे लुक्खे ४, एए चत्तारि चउका सोलस भंगा, देसे कक्खडे देसे मउए देसे गुरुए देसा लहुया देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे, एवं एए गुरुएणं एगत्तएणं लहुएणं पोहत्तएणं सोलस भंगा कायव्वा, देसे कक्खडे देसे मउए देसा गुरुया देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे 'निद्धे देसे लुक्खे एएवि सोलस भंगा कायव्वा, देसे कक्खडे देसे मउए देसा गुरुया देसा लहुया देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे एएवि सोलस भंगा कायव्वा, सव्वेऽवि ते चउसद्धिं भंगा कक्खडमउएहिं एगत्तएहि, ताहे कक्खडेणं एगत्तएणं मउएणं पुहत्तेणं एए चेव चउसद्धिं भंगा कायव्वा, ताहे कक्खडेणं पुहत्तएणं मजएणं एगत्तएणं चउसद्धिं भंगा कायव्वा, ताहे एएहिं चेव दोहिवि पुहुत्तेहि चउसद्धिं भंगा कायव्वा जाव देसा कक्खडा देसा मउया देसा गुख्या देसा लहुया देसा सीया देसा उसिणा देसा निद्धा देसा लुक्खा एसो अपच्छिमो भंगो, सव्वेते अट्ठफासे दो छप्पन्ना भंगसया भवंति । एवं एए वायरपरिणए अणंतपएसिए खंधे सव्वेसु संजोएसु वारस छन्नउया भंगसया भवंति ॥ ६६८ ॥ कइविहे णं भंते ! परमाणू प० ? गोयमा ! चउविहे परमाणू प०, तं०-दव्वपरमाणू , खेत्तपरमाणू , कालपरमाणू, भावपरमाणू , दव्वपरमाणू णं भंते , कइविहे प० ? गोयमा ! चउविहे प०, तं०-अच्छेजे, अभेजे, अडज्झे, अगेज्झे, खेत्तपरमाणू णं भंते ! कइविहे प० ? गोयमा! चउविहे प०, तं०-अणड्ढे, अमज्झे, अपएसे, अविभाइमे, कालपरमाणू पुच्छा, गोयमा ! चउविहे प०, तं०-अवन्ने, अगंधे, अरसे, अफासे, भावपरमाणू णं भंते ! कइविहे प०? गोयमा ! चउव्विहे प०, तं०-वन्नमंते, गंधमंते, रसमंते, फासमंते । सेवं भंते ! २ त्ति जाव विहरइ ॥ ६६९ ॥ वीसइमस्ल सयरस पंचमो उद्देसो समत्तो।। पुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए य सकरप्पभाए य अतरा समोहए समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कि पुट्विं उववजित्ता पच्छा आहारेजा पुचि आहारित्ता पच्छा उववज्जेज्जा ? गोयमा ! पुवि वा उववजित्ता एवं जहा सत्तरसमसए छबुद्देसए जाव से तेणटेणं गोयमा ! ५१ सुत्ता०
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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