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________________ अ. ४ उ०३] सुत्तागसे २३९ वियाणं चउबिहे तचे प० तं० उग्गतवे घोरतवे रसनिजहणया जिभिदियपडिसंलीणया ॥ ३८४ ॥ चउन्विहे संजमे प० तं० मणसंजमे वइसंजमे कायसजमे उवगरणसंजमे । चरविहे चियाए प० तं० मणचियाए वइचियाए कायचियाए उवगरणचियाए, चटविहा अकिंचणया प० तं० मणअकिंचणया वइअकिचणया कायअकिंचणया उवगरणअकिचणया ॥ ३८५ ॥ चउत्थठाणस्ल बीओदेसो समत्तो॥ चत्तारि राईओ प० तं० पव्वयराई पुढविराई वालुयराई उदगराई। एवामेव चउबिहे कोहे प० तं० पव्वयराइसमाणे पुढविराइसमाणे वालुयराइसमाणे उदगराइसमाणे । पव्वयराइसमाणं कोहमणुपविठे जीवे कालं करेइ णेरइएसु उववजइ, पुढविराइसमाणं कोहमणुपविले जीवें कालं करेइ तिरिक्खजोणिएसु उववजइ, वालुयराइसमाणं कोहमणुपविठे जीवे कालं करेइ मणुस्सेसु उववज्जइ, उदगराइसमाणं कोहमणुपविठे जीवे कालं करेइ देवेसु उववज्जइ, चत्तारि उदगा प० त० कद्दमोदए खंजणोदए वालुओदए सेलोदए, एवामेव चउबिहे भावे प० तं० कद्दमोदगसमाणे खंजणोदगसमाणे वालुओदगसमाणे सेलोदगसमाणे । कद्दमोदगसमाणं भावमणुपविठे जीवे कालं करेइ णेरइएसु उववजइ एवं जाव सेलोदगसमाणं भावमणुपविले जीवे कालं करेइ देवेसु उववजय ॥ ३८६ ॥ चत्तारि पक्खी प० तं० रुयसंपन्ने णाममेगे णो रुवसंपन्ने, स्वसंपन्ने णाममेगे णो ख्यसंपन्ने, एगे रुयसंपन्ने वि स्वसंपन्ने वि, एगे णो स्यसंपण्णे णो रूवसंपन्ने, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया प० तं० स्यसंपन्ने णाममेगे णो स्वसंपन्ने ४ ॥ ३८७ ॥ चत्तारि पुरिसजाया प० तं० पत्तियं करेमित्ति एगे पत्तियं करेइ, पत्तियं करेमित्ति एगे अपत्तियं करेइ, अपत्तियं करेमित्ति एगे पत्तियं करेइ, अपनियं करेमित्ति एगे अपत्तियं करेइ, चत्तारि पुरिसजाया प० तं० अप्पगो णाममेगे पत्तियं करेइ णो परस्स, परस्स णाममेगे पत्तियं करेइ णो अप्पणो ४। चत्तारि पुरिसजाया प० तं० पत्तियं पवेसामित्ति एगे पत्तियं पवेसेइ, पत्तियं पवेसामित्ति एगे अपत्तियं पवेसेइ, अपत्तियं पवेसामित्ति एगे पत्तियं पवेसेइ, अपत्तियं पवेसामित्ति एगे अपत्तियं पवेसेइ, चत्तारि पुरिसजाया प० तं० अप्पणो णाममेगे पत्तियं पवेसेइ णो परस्स ४ ॥ ३८८ ॥ चत्तारि रुक्खा प० तं० पत्तोवए पुप्फोवए फलोवए छायोवए, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया प० तं० पत्तो वा रुक्खसमाणे पुप्फो वा रुक्खसमाणे फलो वा रुक्खसमाणे छायो वा रुक्खसमाणे ॥ ३८९ ॥ भारं णं वहमाणस्स चत्तारि आसासा प० तं० जत्थ णं अंसाओ अंसं साहरइ तत्थ वि य से एगे आसासे पण्णत्ते, जत्थ वि य णं उच्चारं वा पासवणं
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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