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________________ ___ अर्धमागधीकी संगत व्युत्पत्ति-बहुतसे लोग इसकी व्युत्पत्ति 'अध मागध्या' करते है अर्थात् जिसका आधा अंश मागधी भाषा हो वह अर्धमागधी है, क्योंकि नाटकीय अर्धमागधीमे मागधीके लक्षण बहुलतासे पाए जाते हैं इसलिए वह अर्धमागधी है और जैनसूत्रोमें मागधीके लक्षण बहुत कम मिलते हैं इसलिए वह अर्धमागधी नहीं। परन्तु उनकी यह व्युत्पत्ति भ्रमात्मक एवं असंगत है। इसकी वास्तविक व्युत्पत्ति है 'अर्धमगधस्येय' अर्थात् मगधदेशके अर्धाशकी जो भाषा हो वह भाषा अर्धमागधी है । इसकी उत्पत्ति पश्चिम मगध अथवा मगध और शूरसेनका मध्यप्रदेश (अयोध्या) होनेपर भी इसमे मागधी और शौरसेनीके इतने लक्षण नहीं दिखते जितने महाराष्ट्रीके। इसका कारण पहले लिखा जा चुका है, दुष्काल और मुनिओका दक्षिण गमन एवं तद्देशीय भापाका प्रभाव । __ अर्धमागधी और महाराष्ट्रीमें भेद-(१) अर्धमागधीमें दो स्वरोंके मध्यवर्ती असंयुक्त 'क' के स्थानमें प्रायः सर्वत्र 'ग' और बहुतसी जगह 'त' और 'य' होता है। जैसे-लोक लोग, आकाश-आगास आदि । 'त' सामाइकसामातित इत्यादि । 'य' शोक-सोय, कायिक-काइय आदि । (२) दो खरोंके बीचका असंयुक्त 'ग' प्रायः कायम रहता है, जैसे भगवन् = भगवं, आनुगामिक-आणुगामिय वगैरह । 'त' अतिग-अतित, 'य' सागर-सायर आदि । (३) दो स्वरों के बीचके असंयुक्त 'च' और 'ज' के स्थानमें 'त' और 'य' दोनों होते है। जैसे रुचि-रुति, वचस्-वति, लोच लोय आदि । 'ज' के स्थानमें 'त' जैसे ओजसू ओत, राजेश्वर-रातीसर इत्यादि । 'ज' के स्थानमें 'य' आत्मज अत्तय, कामध्वजा कामज्झया आदि । (४) दो स्वरोंका मध्यवर्ती 'त' प्रायः कायम रहता है और कहीं २ 'य' भी होता है, जैसे कि जाति-जाति; 'य' करतलकरयल प्रभृति । (५) स्वरोंके बीचमे स्थित 'द' का 'द' और 'त' ही अधिकांश देखा जाता है, कहीं २ 'य' भी होता है, जैसे-प्रदिशः-पदिसो, भेद-भेद आदि । 'त' यदिजति, मृषावाद-मुसावात आदि । 'य' चतुष्पद-चउप्पय, पाद=पाय आदि । . (६) दो खरोंके मध्यमे स्थित 'प' के स्थानमे प्रायः सर्वत्र 'व' ही होता है जैसे-अध्युपपन्न अज्झोववन्न, आधिपत्य आहेवच्च वगैरह । (७) स्वरोंका मध्यवर्ती 'य' प्रायः कायम रहता है जैसे-निरय=निरय, इंद्रिय इंदिय आदि । अनेक स्थानोमे इसके स्थानपर 'त' भी देखा जाता है, जैसे-पर्याय परियात इत्यादि ।
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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