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________________ शास्त्रोद्धार करनेवाले विरले मुनि है । आपको जितनी उपमा दी जायें थोड़ी है। आपश्री चतुर्विध संघके लिए बड़ा ही सराहनीय कार्य कर रहे हो। ऐसा कार्य करने ही से समाजमें ज्ञानप्रचार व शास्त्रोद्धार हो सकता है, थोड़से में बहुत समझे! श्रीमान्-श्रावक संघका पैसा भी सदुपयोगमें लग रहा है। श्रावकसंघको चाहिए कि ऐसे कार्यमें कंजूसी न करते हुए द्रव्यका इसके प्रचारमें सदुपयोग करें जिसमें सवका कल्याण समाया हुआ है। ता० ३१-७-१९५२ आपका भंवरलाल जैन, खमनार (नोट) इनके अतिरिक्त और वहुतसी सम्मतिऍ ग्रंथ वटनेके भयस नहीं दे रहे । आपने इन पृष्टपटोपर अंकित सम्मतिओसे यह तो जान ही लिया होगा कि ये प्रकाशन कैसे है। वैसे तो सव संप्रदायोके मुनिओ और महासतिओकी ओरसे सूत्रोकी मांगे धड़ाधड़ आती रहती है, अर्थात् सूत्रोका प्रचार आगासे अधिक हो रहा है । इसी प्रकार ३२ आगमोंको यथासमय मुनिओ और महासतिओंके करकमलोंमे पहुंचाकर समिति अपना ध्येय पूरा करनेका प्रयत्न करेगी । समिति यही चाहती है कि हमारे मुनिगण प्रकाण्ड विद्वान् वन कर जिनशासनका उत्थान करें। मंत्री
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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