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________________ सुत्तागमे [आयारे लाइमा इ वा भज्जिमा इ वा बहुखज्जा इ वा एयप्पगारं भासं सावज जाव णो भासेज्जा ॥ ७९६ ॥ से भिक्खू वा (२) बहुसंभूयाओ ओसहीओ पेहाए तहावि एवं वएज्जा, तंजहा-रूढा इ वा बहुसंभूया इ वा थिरा इ वा ऊसढाइ वा गन्भिया इ वा पसूया इ वा ससारा इ वा एयप्पगारं असावजं जाव भासेजा ॥ ७९७॥ से भिक्खू वा (२) जहा वेगइयाइं सद्दाइं सुणेज्जा, तहावि एयाई णो एवं वएजा, तंजहा-सुसद्दे इ वा दुसद्दे इ वा एयप्पगारं सावजं जाव णो भासेज्जा, तहावि ताइं एवं वएजा, तंजहा-सुसई सुसद्दे त्ति वा दुसई दुसद्दे त्ति वा एयप्पगारं असावजं जाव भासेजा ॥ ७९८ ॥ एवं स्वाइं कण्हे त्ति वा ५ गंधाइं सुमिगंधे त्ति वा २ रसाइं तित्ताणि वा ५ फासाइं कक्खडाणि वा ८ ॥ ७९९ ॥ से भिक्खू वा (२) वंता कोहं च माणं च मायं च लोमं च अणुवीइ णिहाभासी णिसम्म भासी अतुरियभासी विवेगभासी समियाए संजए भासं भासेजा ॥ ८०० ॥ एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं ॥ ८०१॥ भासाज्झयणे बीओद्देसो समत्तो॥ चउत्थं भासाज्झयणं समत्तं ॥ __से भिक्खु वा (२) अभिकंखेज्जा वत्थं एसित्तए, से जं पुण वत्थं जाणिज्जा, तंजहा-जंगियं-साणयं-पोत्तयं-खोमियं वा तूलकडं वा तहप्पगारं वत्थं ॥ ८०२ ॥ जे णिग्गंथे तरुणे जुगवं वलवं अप्पायंके थिरसंघयणे से एगं वत्थं धारेजा णो वितियं, जा णिग्गंथी सा चत्तारि संघाडीओ धारेजा, एग दुहत्थवित्थारं, दो तिहत्थवित्याराओ, एगं चउहत्थवित्थारं, एएहिं वत्थेहिं असंधिजमाणेहिं अह पच्छा एगमेगं संसीविजा ॥ ८०३ ॥ से भिक्खू वा (२) परं अद्धजोयणमेराए वत्थपडियाए नो अभिसंधारेजा गमणाए ॥ ८०४॥ से भिक्खू वा (२) से जं पुण वत्थं जाणिजा अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाइं (जहा पिंडेसणाए)॥ ८०५ ॥ एवं वहवे साहम्मिया, एग साहम्मिणिं, बहवे साहम्मिणीओ, बहवे समणमाहणा, तहेव पुरिसंतरकर्ड (जहा पिंडेसणाए)॥ ८०६ ॥ से भिक्खू वा (२) से ज पुण वत्यं जाणिजा, असंजए भिक्खुपडियाए कीय वा धोयं रत्तं वा घटुं वा मठ्ठ वा संसर्ट वा संपधूमियं वा तहप्पगारं वन्यं अपुरिसंतरकडं जाव णो पडिगाहेजा, अह पुण एवं जाणिज्जा पुरिसंतरकडं जाव पडिगाहेजा ॥ ८०७ ॥ से भिक्खू वा (2) से जाई पुण वत्थाई जाणिज्जा, विरूवरूवाइं महद्धणमोल्लाइं तंजहा-आजिगागि वा, सहिणाणि वा, सहिणकल्लाणाणि वा, आयाणि वा, कायकाणि वा, गोमियाणि वा, दुगुलाणि वा, पट्टाणि वा, मलयाणि वा, पनुण्णाणि वा, अंसुयाणि
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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