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________________ मुनिओंका ध्यान गया है इस भगीरथ कार्य के लिए श्रीधर्मोपदेष्टाजीका जैनसमाज सदैव ही आभारी रहेगा।” कविराज श्रीचंदनसुति, मु० गीदड़वहा मंडी E. P. (नं १९)"श्री १००८ श्रीरघुवरदयालजी स० ठा० ६ सुखशांतिसे विराजमान है, आपके भेजे दो सूत्र प्राप्त हुए, वे अति सुंदर छपाई सफाई कागजादि सव दृष्टिसे विद्वानोंके लिए महतोपयोगी हैं। आपका कार्य केवल प्रशंसाके योग्य ही नहीं बल्कि आदर्श और आचरणके योग्य है और निःशुल्क भिजवाकर तो अपने समाज पर अपनी अति उदारताका परिचय दिया है अतः इसके लिए कोटि २ धन्यवाद ! ता. १-९-५२ । मंत्री S. S. जैनसभा. मालेरकोटला. E. P. (नं २०) श्री आंबाजी स्वामीए आपने वहुमानथी वंदणा करी सुखशाता पुछावेल छे. आपे भगवती सहित सात सूत्रो छुटक छुटक करी मोकल्या ते साते पुष्पो मल्या छे. ते सहर्ष स्वीकारी लीधा छ । तमो शास्त्रोद्धारनुं काम करी जैनसमाजनी सेवा बजावी रह्या छो. ते घणुं इच्छवा योग्य काम छे. तमोए तथा त्यांनी समितिना कार्यकर्ताओए सूत्रानुवाद गुजराती अने हिदी तथा काव्योमा वनाववानी भावना प्रदर्शित कीधी छे ए अतिस्तुत्य छे. पोरबंदर ता० १०-१-१९५२. (नं. २१) तमारा तरफ थी मागधीभापामां आपणा शास्त्रनी पुस्तिकाओं मोकली ते मळी छे 'सुत्तागमे' तेनी बे जुदी २ मळी छे. आप आ ज्ञानोद्धारक शास्त्रोद्धारने माटे कार्य करो छो ते माटे एमना मंत्रीश्रीने खरेखर धन्यवाद छे. ए प्रकाशन जगत्उपयोगी छे. ए आपनी परोपकारी भावनाने धन्यवाद घटे छे. पोरवंदर ता. ३१-८-५२ सुनिश्री आंबाजी स्वामी
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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