SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुत्र लाभ बिम्बसार-सेना तथा सेनापति लोग भी उसके विरोधी हो रहे है। मैं ऐसा प्रबन्ध कर रहा हूँ कि राज्य-क्राति के समय वह सब मेरी सहायता करें; अन्यथा मगध की अनन्त सैनिक सख्या का मुकाबला सैनिक बल से कौन कर सकता है ? उनको तो नीति द्वारा ही वश मे किया जा सकता है। नन्दिश्री इस प्रकार वार्तालाप कर ही रही थी कि उसके पेट में जोर से दर्द उठा । तब बिम्बसार बोला "प्रिये । यह तो प्रसव वेदना जान पडती है ?" नन्दिश्री ने लजा कर सम्मतिसूचक सिर हिलाया। बिम्बसार यह जानकर कमरे से बाहिर चले गये। उनके कमरे से निकलते ही लम्बनखी ने नन्दिश्री की दशा को देखा तो वह सब कुछ समझ गई। उसनं तुरन्त दाई को बुला कर नन्दिश्री को सौरिगृह मे पहुँचा दिया । थोडी देर में ही सारा घर एक सुन्दर बालक के रुदन के उल्लास से भर गया। सेठ जी दौहित्र के जन्म का समाचार पाकर फूले न समाये। उन्होने अपने कुल पुरोहित को बुलाकर तुरन्त ही बालक का जातकर्म सस्कार किया। उन्होने इस प्रसन्नता मे अपना खजाना खोल दिया और जी भर दान किया। ___ ग्यारहवे दिन बालक का नामकरण सस्कार करके उसका नाम अभयकुमार रखा गया। अब वह बालक द्वितीया के चन्द्रमा के समान प्रतिदिन बढने लगा। यह शीघ्र ही पता चल गया कि बालक असाधारण प्रतिभावाला है। नन्दिश्री स्वय शिक्षिता तथा सस्कारी महिला थी। उसने पालने में ही अभयकुमार को उत्तम सस्कार देने आरम्भ किये। अभयकुमार जब तीन वर्ष का हुआ तो उसके बालसुलभ आग्रह पर उसको अक्षरारभ कराया गया । समझा तो यह गया था कि उसका अक्षराभ्यास केवल एक बालक्रीडा है और वह समय पाकर आप छूट जावेगा, किंतु उसने तो उसे आरम्भ करके छोडने का नाम ही नही लिया। क्रमश वह भली प्रकार लिखना-पढना सीख गया। अब बिम्बसार उसको शस्त्र-सचालन तथा नीति-शास्त्र की शिक्षा भी देने लगे। सात वर्ष की आयु मे अभयकुमार शस्त्र तथा शास्त्र सबन्धी सभी विद्याओ मे कुशल बन गया।
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy