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________________ श्रेणिक बिम्बसार आग मे से बचा लाता है । सो उनको भी मैने बचाया । मैं अपने दो सेवको को. लेकर आग मे घुस गया और इन वस्तुओ को बाहिर सुरक्षित निकाल लाया । नन्दिश्री–किन्तु आपको यह बात सूझी किस प्रकार कि इन्ही वस्तुओ को आग से निकालना चाहिये ? बिम्बसार-उसके दो कारण थे। एक तो यह कि मै जानता था कि राजा मुझी को बनना है, दूसरे, राज्य-चिन्हो की रक्षा करना सबसे बडी राजभक्ति है। नन्दिश्री-तो इन तीनो परीक्षाओ मे सर्वप्रथम आने का आपको क्या पारितोषिक मिला? बिम्बसार यही तो मेरे दुख का वास्तविक कारण है। किसी को तो परीक्षा पास करने का पुरस्कार मिलता है, किन्तु मुझे परीक्षा पास करने का दण्ड ग्रहण करना पड़ा। नन्दिश्री-वह किस प्रकार ? बिम्बसार-पिता ने मुझ पर यह कह कर राजद्रोह करने का दोष लगाया कि मैं अपने पास पॉच सौ सैनिक गुप्त रूप से रखता हूँ। यद्यपि मेरे वह पाच सौ सैनिक गुप्त नही थे, फिर भी यह दोष लगा कर मुझे देशनिकाला दे दिया गया। नन्दिश्री-अच्छा तो आपके हृदय मे यह वेदना है कि आपको बिना अपराध अधिकार-वचित करके दण्ड क्यो दिया गया। बिम्बसार--हा, अब तुम मेरे हृदय की बात समझी। राज्य तो में ले ही लू गा, किन्तु इस दुख का ध्यान मुझे बराबर बना रहता है। नन्दिश्री-राज्य आप किस प्रकार ले लेगे? बिम्बसार--मेरा भाई चिलाती स्वभाव का क्रूर है । वह प्रजा पर बहुत अत्याचार कर रहा है। इधर मेरे गुप्तचर तथा मित्र प्रजा मे उसके दुर्गुणो तथा मेरे गुणो का बराबर प्रचार कर रहे है। वह समय दूर नहीं है जब मैं गिरिव्रज पर सैनिक अभियान करके राजसिंहासन पर अधिकार कर लूगा। नन्दिश्री तो उसके लिये वो ईना चाहिये ।
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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