SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रणय-परीक्षा नन्दिश्री-राजकुमार । मै आपके लिये क्या भोजन बनाऊँ। राजकुमार-मै किसी के यहा भोजन नही किया करता । मेरे पास गाठ में बत्तीस चावल बधे हुए है । यदि तुम इन्ही चावलो का भोजन बना सको तो मैं तुम्हारे यहा आनन्द से भोजन करूँगा। नन्दिश्री-आप मुझे अपने बत्तीस चावल दीजिये तो। मैं उन्ही से आपको छत्तीस प्रकार के व्यजन बना कर खिलाऊँगी। नन्दिश्री के यह कहने पर राजकुमार ने अपनी गाठ खोलकर उसको चावल दे दिये। नन्दिश्री ने चावलो को लेकर प्रथम उनको भिगोया। फिर उनको पानी में पीस कर उनके छोटे-छोटे चार-पाच गुलगुले बनाए । वे गुलगुले उसने लम्बनखी को देकर कहा "लम्बनखी । यह जादू के गुलगुले है । तू इनको ले जाकर मडी मे बेच आ । खरीदार से कहना कि यह वशीकरण गुलगुले है। इनको जिस स्त्री को अपने हाथ से खिलाया जावेगा वह खिलाने वाले के वश मे हो जावेगी।" लम्बनखी जो उन गुलगुलो को लेकर बाजार मे गई तो उसको जाते ही उनके सौ रुपये मिल गए। वह प्रसन्न होती हुई वापिस आई और सौ रुपये उसने नन्दिश्री के हाथ पर रख दिये । अब तो नन्दिश्री ने उन रुपयो की सब वस्तुएँ मोल मँगवा कर राजकुमार बिम्बसार को छत्तीस प्रकार के व्यजन बना कर खिलाये । राजकुमार उसके हाथ का भोजन करके अत्यन्त प्रसन्न हुए। इस प्रकार नन्दिश्री ने राजकुमार की तथा राजकुमार ने नन्दिश्री की प्रच्छन्न रूप से प्रणय परीक्षा कर डाली, जिसमे दोनो ने ही दोनो को शतप्रतिशत नम्बर दिये । इस परीक्षा की यह विशेषता थी कि सेठ जी को.इस का लेशमात्र भी पता नही लगा और वह दोनो एक दूसरे पर पूर्णतया आसक्त हो गए।
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy