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________________ श्रेणिक बिम्बसार हृदय मे बस गया और वह यही सोचने लगी कि किस प्रकार मै प्रत्येक समय उसी को देखती रहूँ । वह जानती थी कि पिता उसकी बात को नही टालते और उसके इच्छा करने से ही वह उसका विवाह किसी भी सत्पात्र के साथ कर देगे । किन्तु वह स्वयं भी कम बुद्धिमती नही थी। वह विवाह का निश्चय करने से पूर्व अपने भावी पति की पात्रता के सम्बन्ध मे सब प्रकार से छानबीन कर लेना चाहती थी । अपने पिता के अनुभव, स्नान-परीक्षा तथा पैर धुलवा कर वह यह देख चुकी थी कि राजकुमार असाधारण रूप से बुद्धिमान है। किन्तु राजकुमार अपना वश-परिचय नही दे रहे थे। अतएव उसने उनके उच्च कुल का परिचय पाने के लिये उनकी एक अन्य परीक्षा लेने का निश्चय किया । वह सोचने लगी की मोती पिरोने का कार्य केवल उच्चवशीय व्यक्ति ही कर सकते है । अतएव उसने एक टेढा-मेढा मोती हाथ मे लेकर राजकुमार से कहा___"राजकुमार यह मोती मुझ से नही पिरोया जा सका। क्या आप इसमे डोरा डाल कर इसे पिरो सकेगे ?" "क्यो नही।" यह कह कर राजकुमार ने उसके हाथ से मोती तथा डोरा लेकर उसे अल्प परिश्रम से ही पिरो दिया। फिर उसने उसमे तनिक गुड लगा कर उसे चीटियो के बिल के पास रख दिया, जिससे चीटिया उसे लेकर बिल मे घुस गई। किन्तु नन्दिश्री ने उसे अत्यन्त सावधानी से चीटियो के बिल मे से इस प्रकार निकाल लिया कि उससे एक भी चीटी नही मरी । राजकुमार नन्दिश्री के हाव-भाव से यह समझ गये कि वह उनको प्रेम की दृष्टि से देखने लगी है। इधर नन्दिश्री भी कुछ कम सुन्दरी नहीं थी। अतएव उसकी दृष्टि से आकर्षित होकर राजकुमार भी उसकी परीक्षा करने लगे थे । इसीलिये उन्होने चीटियो के बिलो द्वारा उसकी परीक्षा की थी। इस समय भोजन के लिये अतिकाल हो चुका था। अतएव नन्दिश्री ने राजकुमार से कहा
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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