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________________ युवराजपद की तृतीय परीक्षा लगभग डेढ पहर दिन चढा होगा । गिरिव्रज के सभी निवासी अपने-अपने काम-काज मे लग गए थे। राजा भट्टिय उपश्रेणिक भी अपने राजमहल से निकल कर सभा भवन को जा रहे थे कि अचानक राजमहल मे से अग्नि की लपटे निकलती दिखलाई दी। राजमहल से आग की लपटो को निकलता देख कर सारा नगर राजमहल की ओर को आग बुझाने दौड पडा । किन्तु राजमहल पर आग बुझाने वालो का पर्याप्त प्रबन्ध था। अतएव सैनिको ने नगरनिवासियो को उनकी निश्चित सीमा से आगे नही बढने दिया। आग बुझाने वाले सैनिक दल ने राजमहल का घेरा डालकर लम्बी-लम्बी सीढियो तथा पानी के लम्बे-लन्चे नलो की सहायता से आग बुझाने का कार्य तुरन्त प्रारम्भ कर दिया। किन्तु अग्नि कुछ इस प्रकार से लगी थी कि बुझने का नाम ही न लेती थी। एक बार तो ऐसा दिखलाई दिया कि जल अग्नि मे पड कर घी का कार्य कर रहा है। किन्तु सैनिक दस्ते भी कम मुस्तैद नही थे। ज्यो-ज्यो अग्नि बढती जाती थी वह दुगने उत्साह के साथ उसके साथ युद्ध करते जाते थे। अन्त मे एक पहर भर युद्ध करने के उपरान्त उन्होने अग्नि पर अधिकार करके उसे बुझा ही दिया। __ 'राजमहल की अग्नि के बुझ जाने पर जब जले हुए सामान की पड़ताल की गई तो राजा तथा महामात्य को यह देखकर बडा आश्चर्य हुआ कि राजकुमार बिम्बसार ने न जाने कब अत्यन्त कौशलपूर्वक छत्र, चमर, सिहासन आदि राज्य-चिन्हो को जलते हुए राजमहल से अत्यन्त सुरक्षित रूप मे निकाल लिया था, जिनकी वे इस समय अत्यन्त सावधानी से रक्षा कर रहे थे। महामात्य कल्पक ने उनको देखकर कहा___"राजकुमार बिम्बसार, तुमने इस समय सचमुच एक युवराज के योग्य ही
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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