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________________ युवराजपद की द्वितीय परीक्षा बू दें उठाते रहे यहा तक कि सूर्य के ऊपर चढ आने से ओस के कण सूख गए। किन्तु उनके घडे पहिले के समान ही खाली के खाली रहे। अत मे उन्होने लज्जित होकर अपने-अपने खाली घडे राजा को जाकर वापिस कर दिये। किन्तु राजकुमार बिम्बसार एक प्रतिभाशाली युवक था। वह धीर, वीर एव साहसी था। आपत्तियो से घबराना उसने सीखा ही नहीं था। घडे को उठाकर प्रथम तो उसको उसने पानी में डालकर खूब भिगोया, जिससे ओस की बू दे उसमे पडते ही सूख न जावे । इसके पश्चात् उसने अपने सेवक की सहायता से एक चादर को घास के ऊपर बिछाया। दो-चार बार घास पर बिछाने से चादर ऐसी भीग गई, जैसे उसे पानी में ही भिगो दिया गया हो। अब तो बिम्बसार ने उस चादर को घडे मे निचोडना प्रारम्भ किया। वह चादर को पृथक्-पृथक् स्थानो मे बिछाकर गीली करके बाद में उसे घडे मे निचोड दिया करते थे । थोडे परिश्रम के बाद ही उनका घडा ओस से भर गया। अब वह उसको अपने सेवक के सिर पर रखवा कर पिता के पास ले गए। राजा ने जो बिम्बसार को प्रोस से भरा हुमा घडा लिवा कर लाते हुए देखा तो प्रसन्न होकर बोले "क्यो बिम्बसार, तुम ओस का घडा भर कर ले आए ?" बिम्बसार-हा पिता जी, ले तो आया। राजा-तुमने उसे किस प्रकार भरा? बिम्बसार-मै अपने साथ एक चादर ले गया था। वह चादर घास के ऊपर बिछाते ही भीग जाती थी, फिर मै उसे घडे मे निचोड देता था। तीसचालीस बार इस प्रकार करने से घड़ा ओस से भर गया। कल्पक-तुम्हारी इस बुद्धि के लिए तुमको मै बधाई देता हूँ राजकुमार ।। अच्छा अब तुम जा सकते हो। बिम्बसार के चले जाने पर राजा ने कल्पक से कहा "तुमने देखा कल्पक, इस परीक्षा में भी बिम्बसार ही उत्तीर्ण हुआ। तुम देख लेना कि अतिम परीक्षा में भी यही उत्तीर्ण होगा।"
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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