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________________ केरल यात्रा आजकल में अपनी शक्ति के अनुसार युद्ध भी करेगा । हम लोग प्राकाशचारी है । मैं अपने विमान पर बैठ कर आपको यह समाचार देने शीघ्रतापूर्वक मा पहुँचा | अब आप जैसा उचित समझें वैसा करें। "हे राजन् क्षत्रिय का धर्म है कि वह प्राणों का संकट आने पर भी युद्ध-क्षेत्र में अड़ा रहे और पीठ न दिखावे । महान् पुरुषो का धन प्रारण नहीं, बरन् मान है। मान नही रहा तो यश कैसे हो सकता है। जो व्यक्ति शत्रु के पूर्ण बल को देखकर बिना युद्ध किये शस्त्र डाल देता है अथवा युद्ध-स्वल से भाग जाता है उसके यश में कालिमा लग जाती है। जो पुरुष धैर्य धारण कर युद्ध करके मर जाते हैं, किन्तु पीठ नहीं दिखलाते वे ही यशस्वी वीर पुरुष धन्य ह । "हे राजन् ! मै आपको केवल यह समाचार देने आया था। अब मुझे वापिस जाने की अनुमति दीजिये, क्योकि मुझे आज ही वहां वापिस पहुंचना है | अपने शीघ्रगामी विमान के द्वारा मैं वहां आज ही पहुंच जाऊंगा । अपने बहनोई की इस आपत्ति के समय मुझे उनके पास शीघ्र ही पहुँच जाना चाहिये ।" यह कहकर जब वह विद्याधर अपने आसन से उठने लगा तो प्रधान सेनापति जम्बूकुमार उससे कहने लगे "हे विद्याधर ! क्षण भर ठहरो । सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार बड़े पराक्रमी है । वह सब शत्रुओं को जीत चुके हैं। उनके पास हाथी, घोड़े, रथ तथा पैदल सैनिकों की चार प्रकार की सेना है । यह सम्राट् महावीर, बुद्धिमान्, राज्य के सातों भ्रंगों से पूर्ण, तेजस्वी तथा यशस्वी है । उनकी माग के ऊपर दृष्टि करके राजा रत्नचूल कुशलपूर्वक नही रह सकता ।" - कुमार जम्बू स्वामी के इस प्रकार के वीरतापूर्ण वचन सुनकर व्योमगति विद्याधर को भारी श्राश्चर्य हुआ। वह कहने लगा 1 "हे बालक । तूने जो कुछ कहा है, वह क्षत्रियों के योग्य ही कहा है । रन्तु यह कार्य असम्भव है। केरल देश यहां से सैकड़ो योजन दूर सुदूर दक्षिण २८६
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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