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________________ श्रेणिक बिम्बसार सहनशम नामक पर्वत पर रहता हूँ। राजा मृगांक तथा रानी मालतीलता के एक पुत्री है, जिसका नाम विलासवती है। राजकुमारी विलासवती अत्यंत रूपवती तथा सुन्दरी है । उसके नेत्र कानों तक विशाल है। इसलिये उसको विशालवती भी कहा जाता है। उसके शरीर की कान्ति चम्पा के पुष्प के समान है। मुझे बतलाया गया है कि राजा मृगाक उस कन्या का वाग्दान आपके साथ कर चुके है और इस बात की प्रतीक्षा कर रहे है कि आप सेना-सहित केरल देश की यात्रा करके उस कन्या का पाणिग्रहण करें। "हम लोग आपके केरल पधारने की प्रतीक्षा कर ही रहे थे कि हम पर एक आपत्ति आगई । केरल देश के दक्षिण में हंस द्वीप है, जिसे सिंहल द्वीप भी कहते है। वहां का राजा रत्नचूल विद्याधर है । वह अत्यंत पराक्रमी तथा तपस्वी है। उसने विलासवती के सौन्दर्य का समाचार सुनकर राजा मृगाक के पास सदेश भेजा कि राजकुमारी विलासवती का विवाह उसके साथ कर दिया जावे । किन्तु राजा मृगांक उस कन्या का विवाह आपके ही साथ करना चाहते है, इसलिये उन्होने रत्नचूल के प्रस्ताव को स्पष्ट अस्वीकार कर दिया। रत्नचूल ने इस बात से अपना अपमान समझा। वह राजा मृगांक के उत्तर से अत्यंत क्रोध में भर गया। अब उसने अपनी सम्पूर्ण सेना लेकर राजा मृगांक के राज्य पर चढाई कर दी है। राजा मृगाक ने उसकी सेना को अपने से अधिक प्रबल देखकर अपने दुर्ग का आश्रय ले लिया है। इस प्रकार राजा मृगांक दुर्ग में बैठा हुआ अपनी रक्षा कर रहा है और रत्लचूल उसके नगर को नष्ट कर रहा है। उस पापी ने अनेक मकानों को तोडकर भूमि से मिला दिया है। आजकल वह धन-धान्य से पूर्ण अनेक ग्रामों तथा नगरों से शोभित उस ऐश्वर्यवान् देश को उजाड़ रहा है। उसने अनेक वनो तक को उखाड़ डाला मौर किलों को तोड़ दिया है । इस समय राजा रत्नचूल केरल देश का विनाश कर रहा है और राजा मृगांक भय से पीडित होकर अपने दुर्ग के भीतर ठहरा हमा किसी प्रकार अपने प्राणों की रक्षा कर रहा है। वैसे राजा मृगांक युद्ध में है। स्वचूल पर आक्रमण करने का वह अवसर देख रहा है और
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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