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________________ श्रेणिक बिम्बसार करके बडा भारी अपराध किया है। उन्होने मन ही मन निश्चय किया कि रानी से गुरु-अवमानना का बदला अवश्य लिया जावेगा। । एक दिन सम्राट् श्रेणिक विम्बसार एक बडी भारी सेना साथ लेकर शिकार खेलने गए। वहा उन्होने वन मे यशोधर नामक एक जैन महामुनि को खड्गासन से ध्यानारूढ पाया। [नि यशोधर परम ज्ञानी, प्रात्मस्वरूप के सच्चे वेत्ता तथा परम ध्यानी थे। उनका मन सर्वथा उनके वश में था। मित्र-शत्रुओ पर उनका समभाव था। वह त्रिकालदर्शी तथा समस्त मुनियो में उत्तम थे। सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार की दृष्टि उन मुनिराज पर पडी । उन्होने इससे पूर्व कभी किसी जैन मुनि को नही देखा था। उन्होने उनको देखकर अपने एक पार्श्ववर्ती सैनिक से पूछा___"देखो भाई | स्नान आदि के सस्कार रहित एव मूण्ड मुडाए यह कौन व्यक्ति खडा है ? मुझे शीघ्र कहो।" पार्श्वचर बौद्ध था। उसने महाराज को इन शब्दो मे उत्तर दिया-- "कृपानाथ | आप क्या इसे नही जानते ? यही नहाभिमानी तो महारानी चेलना का गुरु जैन मुनि है।" महाराज की तो यह इच्छा थी ही कि वह महारानी के गुरु से बदला ले। पार्श्वचर का वचन सुनकर उनकी प्रतिहिंसा की अग्नि प्रज्वलित हो गई। उनको तुरन्त रानी द्वारा किये हुए अपने गुरु के अपमान का स्मरण हो आया । अतएव उन्होने एक क्षण विचार करके अपने साथ आये हुए सभी शिकारी कुत्तो को मुनिराज पर छोड दिया। कुत्ते बड़े भयानक थे। उनकी दाढ़ें बडी लम्बी थी। डीलडौल मे भी वे सिंह के समान ऊँचे थे। किन्तु मुनिराज के समीप पहुंचते ही उनकी सारी भयानकता दूर हो गई। ज्यो ही उन्होंने मुनिराज की शान्त मुद्रा देखी, वह मत्रकीलित सर्प के समान शात हो गए। वह मुनिराज की प्रदक्षिणा देकर उनके चरण-कमलो मे बैठ गए। सम्राट् इस दृश्य को दूर से देख रहे थे । उन्होने जो कुत्तों को क्रोधरहित
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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