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________________ बिम्बसार द्वारा अंग पर अधिकार-अंग तथा मगध का झगडा बहुत पुराना था। अगराज ने पहिले बिग्बसार के पिता राजा भट्टिय उपश्रेणिक को हरा दिया था। किन्तु जैन ग्रन्थो भे लिखा है कि अगराज दधिवाहन को शीघ्र ही वत्स देश के राजा शतालीक के हाथ पराजित हो कर अपने प्राणो से हाथ धोना पडा। यद्यपि शतानीक के पुत्र उदयग ने दधिवाहन के पुत्र दृढवर्मा को अग का राज्य वापिस दे दिया, किन्तु बाद मे राजा बिम्बसार ने दढवर्मा को युद्ध में मार कर अग को मगध साम्राज्य मे मिला लिया। कुछ ग्रन्थो मे बिम्बसार द्वारा पराजित होने वाले अगराज का नाम ब्रह्मदत्त लिखा है। सभव है ब्रह्मदत्त उसकी उपाधि हो, क्योकि इस नाम के अनेक अगराज हमको इतिहास में मिलते है। अग को जीतने से मगध की शक्ति बहुत बढ गई। काशी का कुछ प्रदेश उसको पहिले ही प्राप्त हो गया था, अब अग पर अधिकार हो जाने से मगध की शक्ति इतनी अधिक बढ़ गई कि वह साम्राज्यविस्तार के संघर्ष के उस मार्ग पर अग्रसर होने लगा, जिसका उग्ररूप उसके पुत्र अजातशत्रु के शासन मे देखने को मिला। राजगृह का निर्माण-आदि मे मगध की राजधानी गिरिव्रज थी। किन्तु इस नगर की किलेबदी उत्तम न होने के कारण यह लिच्छपियो के आक्रमणो से सुरक्षित नही था। एक बार तो इन आक्रमणो के कारण गिरिव्रज में भारी आग लग गई । अतएव सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार ने गिरिव्रज को छोड़कर उदयगिरि, सोनागिरि, खण्डगिरि, रत्नागिरि तथा विपूलाचल इन पाच पहाडियो के बीच मे एक नए नगर की स्थापना करके उसका नाम राजगृह रखा। महागोविंद नामक प्रसिद्ध वास्तुकलाविद् ने राजगृह के राजप्रासादो का निर्माण किया। राजगृह को एक ऐसे दुर्ग के रूप मे बनवाया गया कि वह लिच्छवियों के आक्रमणों का सफलतापूर्वक मुकाबला कर सके । उपरोक्त पाचो पर्वतो ने राजगृह की स्वाभाविक प्राचीर का काम अच्छी तरह किया । जिस एक स्थान पर पर्वतो की घाटी थी उसको सुदृढ दीवार बना कर पूर्ण किया गया। इस नए नगर के कारण वज्जियो के आक्रमण बन्द हो गए । राजा चेटक की पुत्री रानी चेलना के साथ विवाह होने से तो
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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