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________________ मगध के दो राजनीतिज्ञ एक ओर हट गये । सामने एक बड़ा सा चत्वर था, जिसमे एक साथ पद्रह-बीस रथ खडे हो सकते थे। चत्वर के बाद एक मजिल का महल था, जिसमे आठ-दस कमरे थे। इनमे से एक मे महामात्य का कार्यालय, एक मे उनका शयनकक्ष तथा एक अन्य कमरे में उनका मत्रणागृह था। युवराज पहुँचे तो महामात्य अपने कार्यालय में बैठे कुछ राजपत्रो पर आज्ञाए लिख रहे थे। युवराज को इस असमय आए देखकर महामात्य बोले "आइये युवराज । आज इस समय कैसे कष्ट किया ?" "कुछ आवश्यक परामर्श करना था महामात्य 1" "कहिये । मै प्रस्तुत है।" "बात यह है कि मै कई सप्ताह से पिता जी को कुछ चिन्तित-सा पाता हूँ। क्या आपने भी इस बात पर लक्ष्य किया है ?" "लक्ष्य क्या करता, उनकी चिन्ता तो बिल्कुल स्पष्ट है, युवराज " "तो आपको उनकी चिन्ता के कारण का भी पता होगा ?" "मै समझता हू कि उनकी चिन्ता का कारण वैशाली की राजकुमारी का वह चित्र है जो उनको अयोध्या के चित्रकार भरत ने उस दिन दिया था।" ___ "तो क्या आपने उनकी चिन्ता के निवारण करने का कुछ उपाय भी सोचा ?" "उपाय तो इसका केवल एक ही है कि सम्राट् के लिये उस राजकुमारी को प्राप्त किया जावे, किन्तु यह कुछ सरल कार्य नहीं है । इस चित्र के आने के पूर्व भी मै इस राजकुमारी को सम्राट् के लिये प्राप्त करने का यत्न कर चुका है। क्योकि मेरी नीति यह है कि मगध साम्राज्य और उसकी मित्रता का विस्तार यथासभव बिना युद्ध के किया जावे। मगध के उत्तर मे वैशाली गणतत्र एक प्रबल राज्य-सगठन है। वह मगध का पूर्णतया विरोधी है। मैं सोचता था कि यदि वहा की राजकुमारी से सम्राट का विवाह हो जाता तो वैशाली का गरणतत्र हमारा मित्र राष्ट्र बन जाता। किन्तु लिच्छवी गणतत्र का गणपति राजा चेटक जैनी होने के कारण हमसे घृणा करता है। आज कल तो लिच्छवी २०५
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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